वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1069
From जैनकोष
अष्टावंगानि योगस्य यान्युक्तान्यार्यसूरिभि:।
चित्तप्रसत्तिमार्गेण बीजं स्युस्तानि मुक्तये।।1069।।
योगांगों की उपयोगिता― योग के जो 8 अंग पूर्व आचार्यों ने बताये हैं वे चित्त की प्रसन्नता के अर्थ हैं। मन निर्मल बने, मन की एकाग्रता हो इसके लिए हे वह और चूँकि वे यम नियम आदिक चित्त की निर्मलता के कारण हैं और चित्त की निर्मलता हो तो रत्नत्रय की ओर उपयोग चले, इस कारण वे परमगत मुक्ति के भी कारण बन गए हैं। जैसे एक बार बालगंगाधर तिलक भाषण में कह रहे थे कि लोग कहते हैं कि गंगा के स्नान करने से मुक्ति होती है, पर इसका सीधा अर्थ यह नहीं है कि कपड़े निकाला, गंगा में डुबकी लगाकर स्नान किया, लो पाप धुल गए, मुक्ति मिल गयी, पर इसका अर्थ यह है कि दिन भर गंगा स्नान करने से शरीर का मल हट जाता है, शरीर कुछ हल्का हो जाता है, चित्त में कुछ प्रसन्नता हो जाती है, शरीर में स्फूर्ति आती है। ऐसे समय में कोई ध्यान करे तो उसके ध्यान बना करता है। यों गंगास्नान से मुक्ति मान लेने पर मुक्ति ध्यान से है पर ध्यान के जगने में कारण है स्नान। इस तरह ये जो यम नियम बताये हैं ये मुक्ति के कारण हैं, यों सीधा मुक्ति का कारण तो आत्मा का परमध्यान है। पर यम नियम आदिक करने से ऐसा वातावरण बनता है। ऐसी चित्त में निर्मलता जगती है कि यह आत्मा का परमध्यान कर सकता है। इस तरह ये कारणभूत बन गए, पर मुक्ति का साक्षात् कारण तो रत्नमय ही है। और इसी तरह हमारे जितने भी व्यवहारधर्म होते हैं ये व्यवहारधर्म भी सीधे मोक्ष के कारण नहीं हैं। मोक्ष का सीधा कारण तो आत्मश्रद्धान, आत्मज्ञान और आत्मरमण है। पर हमारा वह व्यवहारधर्म पूजा पाठ, जाप, सामायिक, स्वाध्याय, सत्संग ये हमारे चित्त की प्रसन्नता के कारण हैं और हमारे आत्मस्वरूप की याद दिलाने के कारण हैं। यहाँ तक तो हमारा काम बना व्यवहारधर्म से, इसके बाद फिर हम अपने आप अकेले ही पर की अपेक्षा तजकर स्वयं में बसें तो वह समाधि या विशुद्ध ध्यान प्रकट हो, फिर इससे परव्यवहार की चीज नहीं मिलती। तो यह व्यवहारधर्म है जो परंपरा मुक्ति का कारण है। यह सब इस प्रकार है, साक्षात् नहीं है। तो यों इस अध्यात्म योग के कारणों में जो आठ अंग बताये हैं ये चित्त की निर्मलता के कारण हैं, चित्त के एकाग्र करने के कारण हैं। और जब चित्त एकाग्र हो सकता है तो वहाँ आत्मा का ज्ञान श्रद्धान और आचरण निश्चय से बन सकता है। यों मुक्ति के कारण होते हैं।