वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 108
From जैनकोष
गजाश्वरथसैन्यानि मंत्रौषधवलानि च।
व्यर्थीभवंति सर्वाणि विपक्षे देहिनां यमे।।108।।
अंतकाल में उपायों की व्यर्थता― जब यह काल इस प्राणी के विरुद्ध हो जाता है उस समय हाथी, घोड़े, रथ, सेना, मंत्र, औषधि― ये सब बल व्यर्थ हो जाते हैं। किसी वैद्य से रोगी को दिखायें तो वैद्य दम भरता है कि मेरी ऐसी अचूक औषधि है कि रोगी का रोग नहीं रह सकता, पर साथ ही यह भी कहना पड़ता है कि यदि इसका अंतकाल नहीं आया हो तो रोग तो ठहर नहीं सकता। उनका दम भरना भी ठीक है। वैद्य का रोगी से हाथ लग जाय तो उस रोगी का रोग ठहर ही न सके, यह बात उनकी दृष्टि से बिल्कुल सच है। या तो वह ठीक हो जायेगा इसलिये रोग न ठहरेगा या मरण हो जायेगा तो फिर रोग ठहरेगा कहाँ? वैद्य लोग दम भरकर कहते हैं। उनकी बात में कुछ असर नहीं है।
खाली हाथ जाना― लोग अपनी रक्षा के लिये हाथी, घोड़ा का वैभव रखते हैं, सेना साज दल बल रखते हैं, कोई शत्रु मेरे पर न आ जाय, मेरा बिगाड़ न कर सके तो ये सब सामान रखते हैं किंतु सुना होगा सिकंदर एक बहुत बड़ा बलिष्ट राजा हो गया है। उसने इस भूमि पर बहुत अधिक दूर तक अपना राज्य फैला लिया था, किंतु जब वह गुजरने लगा, इतने बड़े विस्तृत राज्य का अधिकारी सम्राट् सिकंदर मरते समय यह सोचने लगा कि इस समय मेरा कोई साथी नहीं है। इतनी बड़ी सेना, बड़ा वैभव, राजा लोग जो चरण में नतमस्तक होते हैं ये कोई भी मेरे साथी नहीं हो रहे हैं। मैं इतना पराक्रमी एक इस आयुक्षय से ही हार गया। मरते समय उसके वैराग्य सा हुआ और लोगों से यह कह गया― ऐ मंत्रियों ! देखो मरने के बाद जब लाश को तुम ठटरी पर धरकर बाजारों में से ले जावोगे तब मेरे दोनों हाथों को बाहर निकालकर ले जाना, ताकि दुनिया के लोग यह जान जायें कि इतना बड़ा वैभववान् यह सिकंदर आज खाली हाथ जा रहा है।
वैभव से अलाभ― कुछ भी वैभव हो, इस वर्तमान वैभव से इस जीव को अज्ञानी पुरुष को कुछ लाभ है क्या? जब तक वैभव का संयोग है तब तक मूर्छा ममता विकल्प चिंता अनेक छल बल करके अपने आपके इस चैतन्य प्राण का घात कर रहे हैं और जब इस वैभव का वियोग होता है इस वैभव को छोड़कर मर जाता है उस समय तो यह महान् संक्लेश करता है। अहो ! बड़े छल बल से, बड़ी कला कुशलता से अनेक श्रम करके यह वैभव संचित किया था, आज यह सारा का सारा छूट रहा है। यों सोचकर मरते समय यह जीव बहुत दु:खी होता है और मरण के समय में जैसा परिणाम होता है उसके अनुसार अगले भव की जिंदगी भी चला करती है। दु:खपूर्वक मरे, संक्लेश सहित मरण हो तो अगले भव में भी इस जीव को ऐसे साधन जुटते हैं कि वहाँ भी संक्लेश करेगा।
मरण से बचाने का अतिप्रेमी का भी अनधिकार― जब यह काल इस प्राणी के विरुद्ध हो जाता है तब ये सारे ठाटबाट यों ही पड़े रह जाते हैं, कोई भी वश नहीं चलता। माँ आँखें फाड़-फाड़कर देखती रहती है, यह मेरा पुत्र मेरे ही सामने जा रहा है। अरे इसके एवज में मैं न मर गयी। कितना तीव्र मोह से व्याकुल होकर उन तड़फती हुई आँखों से निहारती रहती है लेकिन वश कुछ नहीं चलता। परिजन, मित्रजन बड़ा बल लगाते हैं, भाव बनाते हैं और यह कहता है कि सारी संपदा भी खर्च हो जाय पर मेरा यह इष्ट बच जाय और खर्च भी कर डाले तब संपदा तो भी आयुक्षय किसी से बचायी जा सकती है क्या? हे आत्मन् ! अपने को ऐसा तो निरखो कि यह जिंदगी सदा न रहेगी। किसी दिन तो समाप्त होगी ना। तो इस थोड़ी सी जिंदगी में अपना शुद्धभाव रखना चाहिये।
कषायों को दूर करने का संदेश― क्रोध कम हो, लोगों को क्षमा कर दीजिये। यह अभिमान किस पर बगराना है? कौनसी चीज हमारा बड़प्पन बनाने वाली है? सब कुछ असार है, भिन्न है, पर है। नम्रता का भाव रहे। किससे छल करना, किसके लिये विश्वासघात कपट समाचार करना? अरे इस मायाचार के परिणाम से यह जीव अनेक पापों से बंध करता है और करीब-करीब मायाचारी पुरुष पर इस भव में भी बुद्धि दोष की आपत्ति आती है, चित्त ठिकाने नहीं रहता, दिमाग बिगड़ जाता है। यहाँ किस बात पर लोभ करना, धन संचय करके रखना? कोई चीज अपने रखाये रहती भी है क्या। कितना भी उदारचित्त होकर परोपकार में लगा दिया जाय वैभव, फिर भी जितना पुण्य है उससे भी और बढ़ता है और उसके अनुसार पता नहीं है कि किस प्रकार से वैभव और आ जायेगा। न आये तो परोपकार में व्यय करके यह संतोष तो किया जा सकता है ना जो कि बात भी सत्य है कि यह धन परोपकार में न लगता तो न जाने किन अन्य उपायों से कष्ट हो जाता? रखाये से वैभव रहता नहीं है।
धर्म में अग्रसर होने की प्रेरणा― भैया ! कषायों को मंद करके अपने आपको आत्मश्रद्धान, आत्मज्ञान और आत्म–आचरण में लगाना चाहिये। मोक्षमार्ग का आदर करो, वैभव का आदर मत करो। यह वैभव रहकर भी दु:खी करेगा और जाकर भी दु:खी करेगा। वैभव का संयोग भी कष्ट देगा और वियोग भी कष्ट देगा। यह तो पुण्यानुसार जो कुछ आता है आने दो, उसके समझदार बनो। उसमें गुजारे की व्यवस्था बनाओ और अपने आपके जीवन को ‘धर्म के लिये ही यह मिला है’ ऐसा जानकर धर्म में अतीव अग्रसर होवो।