वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1231
From जैनकोष
असत्यकल्पनाजालकश्मलीकृतमानस:।
चेष्टते यज्जनस्तद्धि मृषारौद्रं प्रकीत्तितम्।।1231।।
जो मनुष्य असत्य झूठ अहितकारी कल्पनाओं के समूह से पापी बनकर मलिन हृदय होकर कुछ भी चेष्टा करे उसके निश्चय करके मृषानंद नाम का रौद्रध्यान कहा गया है। झूठ को अच्छा बताने में, झूठ का पक्ष करने में, झूठी गवाही गढ़ने में आनंद मानना, ये सब मृषानंद नाम का रौद्रध्यान हैं। जब कभी कई लोगों की गोष्ठी बैठ जाती है, गप्पें चलती हैं, रात्रि के 10-12 बज जाते हैं तो उन गप्पों में जो मौज लिया जाता वह सब रौद्रध्यान है, और उन्हीं गप्पों में कोई बात ऐसी मजाक में निकल जाती कि कहो लड़ाई हो जाय। तो कितनी ही विडंबनाएँ सामने आती हैं। तो कुछ भी बोले― हित, मित, प्रिय बोले। झूठी बात बोलना, झूठी गवाही देकर किसी को फँसाना, और-और भी बातें हैं उनसे इस जीव का कौनसा हित हो गया? धर्म का लाभ होता हो तो बतावो। समस्त क्रियावों का प्रयोजन है धर्म का लाभ होना, धर्म की प्रभावना होना, स्वयं में धर्म का विकास हो। तो इस मृषानंद नाम के रौद्रध्यान से इस जीव को कौनसे हित की प्राप्ति है? ऐसे असत्य कल्पनाओं के समूह से जो चेष्टा की जाती है वह निश्चय से मृषानंद नाम का रौद्रध्यान कहा गया है। मृषा मायने असत्य उसमें आनंद मानना सो मृषानंद नाम का रौद्रध्यान है। विद्यार्थी अवस्था में भी एक दूसरे को छकाना, धोखा देना और ऐसी बात बोलना जिससे दूसरे का नुकसान हो और खुद का लाभ हो, ऐसी जो गप्पें चलती हैं वह मृषानंद नाम का रौद्रध्यान है। एक भाई ने बताया कि एक बार ऐसा हुआ कि कोई एक छात्र लड्डू लेकर आया, उसे देखकर कई लड़कों ने कहा कि अमुक जगह आज एक हाथी को फाँसी दी जायगी, सो हम लोग देखने जा रहे हैं। उस लड्डू लाने वाले लड़के ने क्या किया कि लड्डू रखकर बड़ी जल्दी दौड़कर उस दृश्य को देखने चला गया। इधर लड़कों ने सारे लड्डू खा डाले। तो दूसरे को धोखा देकर अपना काम बना लेने का जो परिणाम है यह परिणाम रौद्रध्यानी पुरुष के होता है। तो यह जो मृषानंद की प्रीति है वह मृषानंद नाम का रौद्रध्यान है।