वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1236
From जैनकोष
पातयामि जनं मूढं व्यसनेऽनर्थसंकटे।
वाक्कौशल्यप्रयोगेण वांछितार्थप्रसिद्धये।।1236।।
कोई इस प्रकार विचार करे कि मुझमें वचन बोलने की इतनी प्रवीणता है कि उसके प्रयोग से में वांछित प्रयोजन की सिद्धि के लिए मूढ़ जनों को अनर्थ संकट में डाल दूँ, ऐसा मैं चतुर हूँ, ऐसा अपने आपमें चतुराई का अभिमान रखकर मौज करना यह सब रौद्रध्यान है।