वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1340
From जैनकोष
नाभिस्कंधाद्विनिष्क्रांतं हृत्पद्मोदरमध्यगम्।
द्वादशांते सुविश्रांतं तज्ज्ञेयं परमेश्वरम्।।1340।।
अब प्राणायाम की साधना में कुछ लौकिक चमत्कार भी होते हैं। उस पवन में चलने की गति को जानकर और उसके रोकने को समझकर उस वायु के प्रकारों से आयु समय भवितव्य शुभ अशुभ ये सब जान लिए जाते हैं, इसका वर्णन इसी ग्रंथ में आगे आयगा। प्रथम तो प्राणायाम के विधान में एक प्राकृतिक मर्म यह है कि यह जीव जब श्वास लेता हे तो स्व की आवाज आती है और जब श्वास छोड़ता हे तो हं की आवाज आती है। इस बात को आप इस समय भी प्रयोग करके देख लीजिए। श्वास का खींचना और बाहर निकालना यह है सोहं की प्रक्रिया। अब सोहं का अर्थ क्या है? सोहं का अर्थ है जो वह है सो मैं हूँ। वह कौन? परमात्मा, प्रभु, जो प्रभु है, सो मैं हूँ। जब श्वास ले रहे हों उस काल में स्व की आवाज आती है। जितनी देर श्वास लेते हैं उतनी देर प्रभु का ध्यान रहता। वह प्रभु किस स्वरूप वाला है? निष्कलंक है, ज्ञानानंद का पिंड है, वे सब बातें विचार में लायें और जब श्वास बाहर निकलती है तो उस समय हं का शब्द निकलता है। तो उस समय हम अपने स्वरूप का ध्यान करने लगें, तो श्वास की प्रक्रिया में अपने ज्ञान की प्रक्रिया मिला दें तो इस मेल से इस आत्मा में विकास उत्पन्न होता है। अशांति संकट सब समाप्त हो जाते हैं। तो पवन की जो गति है उस गति की परख से शुभ अशुभ जान लिया जाता है और इसमें एक सीधी यह भी बात है कि ध्यान के समय शुभ अशुभ जानने के समय किसी का भविष्य साधारण तथा उत्तम मध्यम जघन्य होता है, इस प्रकार निर्णय करने के समय जो एक सर्वप्रथम कुछ बिंदुसा दिखता है, आँखें बंद करने के बाद जब आँखें खोलने की तैयारी करते हैं उस समय कुछ बिंदु, कुछ रूप नजर आता है। वह रूप यदि पीला, नीला आदि नजर आया तो इन रंगों की नजर से शुभ और अशुभ का विभाग किया गया है। और भी किसी प्रकार से हम इन पवनों के द्वारा शुभ अशुभ का निर्णय करें वह बात भी संक्षेप से इस ग्रंथ में आयगी। तो प्राणायाम से एक मुख्य प्रयोजन तो यह निकलता है कि आत्मा का ध्यान बन जाय, एक आत्मस्वरूप में ही चित्त लग जाय, एक तो यह लाभ है ही, मगर लौकिक लाभ भी है। प्राणायाम की साधना वाले अपने उन पवनों की परख से शुभ अथवा अशुभ को जान लिया करते हैं। कैसा काल होगा, कैसी आयु है, क्या शुभ फल है, क्या अशुभ फल है― ये सब बातें बता दी जाती हैं। कोई रोगी आकर प्रश्न करे तो उसका भविष्य भी इस प्राणायाम वाले को कुछ-कुछ अनुमान में आते रहते हैं। यों प्राणायाम से लौकिक चमत्कारों की भी सिद्धि होती है और वह चमत्कार है ज्ञान कर लेना, शुभ अशुभ जान लेना।