वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1384
From जैनकोष
जयति समाक्षरनामा वामावाहस्थितेन दूतेन।
विषमाक्षरस्तु दक्षिणादिक्संस्थेनास्त्रसंपाते।।1384।।
पूछने वाला पुरुष उसी का नाम रखा है दूत। यद्यपि दूत नाम बुरे का नहीं है लेकिन रूढ़ि में दूत शब्द बुरे नाम में लोग मानते हैं। जो यहाँ का वहाँ भिड़ाये उसे कहते हैं तुम दूती क्यों करते हो? लेकिन दूत का अर्थ बुरा नहीं है। उसे तो दोगला या चुगला कहनाचाहिए। दोगला चौगलाहोना और बात है दूत होना और बात है। दूत होते हैं बुद्धिमान पुरुष, विवेकीजन और चुगल होते हैं ऊधमी पुरुष। जिसके दो गले हों सो दोगला। एक बात उससे कहा, दूसरी बात दूसरे से, उसने अपने दो गले बना लिया, चौगला तो उससे भी बुरा है, उसने चार गले बना लिए। जैसे तिगड्ड होता है ऐसे ही चार जगह फिरना सो चौगड्ड। दूत नाम है किसी संदेश को भली प्रकार युक्ति पूर्वक विधि से उपस्थित करे उसका नाम है दूत। कोई दूत आकर जैसे किसी विषय में पूछे, उसके नाम के अक्षर यदि समान हैं, 2, 4, 6, 8 इन संख्यावों में है और वह प्रश्नकर्ता के बाईं तरफ खड़ा होकर पूछे और बायाँ ही स्वर समाधानकर्ता के चल रहा हो तो उसका समाधान यह है कि चाहे कितनी भी कठिन विपदा आये वह जीतेगा ही, और किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में पूछें जिसके अक्षर 1, 3, 5, 7, 9 ऐसे विषम हों वह समाधानकर्ता के दाहिनी तरफ आकर पूछे और दाहिना स्वर चल रहा हो तो भी वही उत्तर है, जो पहिले का उत्तर है, और इसके विरुद्ध बात हो तो उसमें पराजय का समाधान है। यह सब स्वरविज्ञान में जो बात ज्ञान के परिचय की है वह बात कही जा रही है, पर जिसकी धुन केवल एक अध्यात्म आनंद की है, केवल ज्ञानस्वरूप के अनुभव की है ऐसे पुरुष को इन बातों में रुचि नहीं जगती, उसकी एक ध्यानसाधना में प्राणायामसाधना में अथवा उस एकाग्र चित्त होने की स्थिति में जो श्वास निरोध चिरकाल तक होता रहा है उस परिस्थिति में ऐसी साधना बन जाती है, स्वरविज्ञान हो जाता हे कि जिससे दूसरों का शुभ अशुभ भी बताया जा सकता है।