वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1385
From जैनकोष
भूतादिगृहीतानां रोगार्त्तानां च सर्पदष्टानां।
पूर्वोक्त एव च विधिर्बोद्धव्यो मांत्रिकावश्यम्।।1385।।
जो बात अभी युद्ध के जय पराजय के संबंध में बताई गई हे ठीक वैसी ही बात उन पुरुषों की भी है जो भूत आदिक से पीड़ित हैं, रोग से दु:खी है, सूर्य से डसे हैं, किसी विपत्ति में फँसे हैं। उनका भी समाधान इस ही प्रकार होगा, उस पीड़ित पुरुष के नाम के अक्षर समान हों और वह समाधानकर्ता के बायें ओर चलें तो समझिये कि सिद्धि है और नाम के अक्षर विषम हों और दाहिनी ओर आकर पूछे और दाहिना स्वर समाधानकर्ता का चल रहा हो तो वह शुभ है, इससे विपरीत शुभ नहीं है।