वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1683
From जैनकोष
हिंसास्तेयानृबह्वारंभादि पातकै:।
विशंति नरकं घोरं प्राणिनोऽत्यंतनिर्दया:।।1683।।
नरकों में जन्म का कारण―नरकों में जीव किस पाप के उदय से गमन करते हैं वह इस गाथा में बताया है। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पापों के कारण ये निर्दयी जीव नरकों में जन्म लेते हैं और दु:ख पाते हैं। जिन जीवों की हिंसा में प्रवृत्ति रहती है, जो बेरहम होकर भोले भाले पशुवों पर खंजर चलाते हैं उन्हें उसके फल में नरकगति में गमन करना पड़ता है। जो मनुष्य झूठ बोलने की प्रकृति रखते हैं, झूठी गवाही देते हैं, हंसी मजाक में भी बहुत बार झूठ बोलते हैं तो ऐसे झूठ बोलने वाले जीव नरक आयु का बंध करते हैं और नरकों में जन्म लेते हैं। एक बार भी कोई झूठ बोले तो उसकी बाढ़ खतम हो जाती है और फिर दूसरी बार झूठ बोलने का भी द्वार खुल जाता है, फिर उसका जीवन ही झूठ बोलने में व्यतीत हो जाता है। झूठ बोलने में खुद का कितना घात है। अपने आपकी सुधि तो वहाँ रहती ही नहीं, दूसरे को दु:ख होगा―इस ओर भी ख्याल नहीं रहता, दयाहीन भी हो जाता है और जान समझकर भी कि मेरे झूठ बोलने से इसका बिगाड़ है―वह अपनी झूठ बोलने की ही प्रवृत्ति रखता है। यदि किसी को मालूम हो जाय कि इसने बोला तो वह झूठ बोलने वाला इसकी निगाह से उतर जाता है। व्यापार कार्यों में भी ग्राहक लोग उसे सत्य समझकर ही उससे माल खरीदते हैं, यदि पता पड़ जाय कि यह झूठ बोलता है तो ग्राहक लोग उसके पास से कोई चीज नहीं खरीदते। झूठ बोलने से एक तो प्राण पीड़ा होती है और यह झूठ बोलना कभी-कभी दूसरे के प्राणहरण का कारण बन जाता है। तो हिंसा की तरह झूठ पाप में भी इस जीव को नरक गति में जाना पड़ता है। इसी तरह चोरी का पाप है। किसी की चीज चुरा लेना सो चोरी है। ये चोर लोग चोरी करना उस समय तो कुछ इष्ट मानते होंगे लेकिन चोरी करके भी वे प्रसन्न नहीं रह पाते, और जरा-जरासी बातों में शक कर लेते हैं कि ये कहीं हमारी बात जान तो नहीं गए। तो चारी करने वाला पुरुष कहीं शांत नहीं रह सकता, सुखी नहीं रह सकता और एक ईमानदार गरीब भी हो, मेहनत करता हो तो सबके सामने निर्भय होकर ठंडा पानी तो पी लेगा, मगर चोरी करने वाला पुरुष तो किसी के पास बैठने भी न पायगा और उसे एक महान् पाप करके नरक गति में जन्म लेना पड़ेगा। कुशील पाप में―अपनी स्त्री के सिवाय अन्य सब स्त्रियां भी अपनी मां बहिन बेटी की तरह हैं लेकिन कुशील पाप का उदय आये तो यह अज्ञानी जीव उन पर स्त्रियों को बुरी निगाह से देखता है तो उसमें इसे इतना पाप लगता है कि जिसके उदय में नरकों में जन्म लेना पड़ता है। परिग्रह पाप में―किसी के 10-20 दूकानें हैं, कारखाने हैं, और भी कारखाने, कंपनियां खोलने की धुन में हैं, अनेक आरंभों को जो बसाये है उसका दिल देखो―वह कितनी बड़ी-बड़ी आपत्तियां भोग रहा है, ऐसा पुरुष मरण करके नरक गति में जन्म लेता है। बहुत मूर्छा हो परिग्रह में, परिग्रह को जान की तरह मानें, ऐसी आसक्ति वाले पुरुष नरक गति में जन्म लेते हैं और घोर दु:ख भोगते हैं, और वहाँ जाकर वे नारकी दयाहीन हो जाते हैं।