वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1730-1731
From जैनकोष
इति चिंतानलेनोच्चेर्दह्यमानस्य ते तदा।
धावंति शरशूलासिकरा: क्रोधाग्निदीपिता:।।1730।।
वैरं पराभवं पापं स्मारयित्वा पुरातनम्।
निर्भर्स्य कटुकालापै: पीडयंत्यतिनिर्दयम्।।1731।।
अन्य नारकियों के द्वारा आक्रमण का संताप―इस प्रकार चिंतारूपी अग्नि में जलते हुए उन नारकियों के ऊपर उसी समय अन्य पुराने नारकी टूट पड़ते हैं, आक्रमण कर बैठते हैं । नारकी उत्पन्न हुआ तो वहाँ सब नई-नई चीजें देखता है । अरे मैं किस भूमि में आ गया? कैसी कठिन-कठिन रचना है, सब नई चीजें देखकर वह नारकी चिंतातुर होता और कुछ अपने पूर्व भव के पापों का स्मरण कर के पश्चाताप करता है, और कोई नारकी आकर शस्त्रों से उसके खंड-खंड कर डालता है । महाक्रोधी भयंकर चीत्कार करते हुए अन्य नारकी जीव उस पर टूट पड़ते हैं और उसे पीड़ित करते हैं । नारकी पूर्वभव के पापों को याद करता है । ओह ! मैंने पूर्वजन्म में ये पाप किए थे इसलिए अब उन पाप कर्मों का फल भोगना पड़ रहा है । दूसरे नारकी उसके ही शरीर के मांस को उसे खिलाते हैं और कहते हैं कि ले तू खूब मांस अब खा ले, पूर्व भव में मांस खाने का तू बड़ा लोलुपी रहा, किसी नारकी ने पूर्व भव में खूब शराब पी हो तो अन्य नारकी उस नारकी को तप्त लोहा, तांबा आदिक तप्तायमान जल पिलाते हैं, कहते हैं कि ले, तूने पूर्वभव में बहुत शराब पी, अब पी ले खूब शराब । किसी ने पूर्व जन्म में कहो उसका उपकार किया हो पर वहाँ पर उसे वह विरोधी जंचता है । चाहे किसी माँ ने अपने बच्चे की आँख में अंजन लगाया हो बड़ी हित बुद्धि से, पर मां और बेटा यदि नरक में जन्म लेते हैं तो वह बेटा यों विचार करता है कि इसने पूर्व जन्म में मेरी आंखों में सींक घुसेड़कर मेरी आंखें फोड़ना चाही थीं । तो वे नारकी पूर्वभव के पापों की याद दिलाते हैं, बैर की याद दिलाते हैं और बहुत कटुक वचनों से उसका तिरस्कार करते हैं । बड़ी निर्दयता से जिस प्रकार भी बनता है वें पुराने नारकी उस नये नारकी को दुःख देते हैं । जब वह नया नारकी समर्थ हो जाता है तो वह भी दूसरे नारकियों को मारने लगता है । बहुत से लोग उन नारकी जीवों के फोटो बनाते हैं उनका मुख ऊँट जैसा बैल जैसा, जिनके सींग भी लगे हैं, तो वे कोई पशु हों ऐसी बात नहीं है । वे स्वयं नारकी ही हैं जो अनेक प्रकार से अपने शरीर की रचना कर लेते हैं । उनका बड़ा भयानक रूप हो जाता है, जिस प्रकार बने वे दूसरे नये नारकी को दुःख देने की ही बात सोचा करते हैं । वे सभी के सभी नारकी परस्पर में ही लड़ते हैं और परस्पर में ही एक दूसरे का घात करते हैं ।