वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 79
From जैनकोष
यद्देशांतरादेत्य वसंति विहगा नगे।
तथा जंमांतरांमूढ़ प्राणिन: कुलपादपे।।79।।
पक्षियों की तरह अत्यल्प काल तक एकत्र निवास― अनित्य भावना के इस प्रकरण में प्राप्त समागमों की अनित्यता बतायी जा रही है। जैसे अन्य देशों से आकर पक्षीजन एक पेड़ पर बैठ जाते हैं इसी प्रकार जन्म-जंमांतरों से आ आकर ये प्राणी एक इस वंशवृक्ष में इकट्ठे हो जाते हैं। हे मूढ़ ! थोड़ी देर के लिये एक जगह इकट्ठे हुए इन परजीवों में तू आसक्ति करता है और इन्हें मान लेता है कि ये सब मेरे हैं, इस मोह बुद्धि से तू अब उनके वियोगकाल में अत्यंत दु:खी होता है, कष्ट भोगता है। जैसे वे पक्षी अपने ही आराम के लिए अपने ही आप एक पेड़ पर इकट्ठे हो जाते हैं और जैसे ही सबेरा होता है तो अपने आहार की खोज के लिए वे उस वृक्ष को छोड़कर अपने इष्ट देशों को चले जाते हैं ऐसे ही ये संसार के प्राणी जैसा जिसने वांछा का निदान बाँधा, पुण्य पाप किया उस कर्म के अनुसार आ-आकर एक कुल गृह में इकट्ठा हो जाते हैं और फिर आयु के क्षय होने पर अपनी-अपनी बाँधी हुई आयु के अनुसार उस-उस गति को चले जाते हैं। इन आने जाने वाले प्राणियों में हे प्राणी ! तू मोह को प्राप्त मत हो। यथार्थ बात की समझ रख।
पशु पक्षियों में भी अलभ्य मानवीय मोहवृत्ति― ये पक्षीजन तो फिर भी चुपचाप आते हैं, पेड़ पर बैठ जाते हैं। उन्हें किसी पक्षी से, किसी प्राणी से विशेष राग नहीं है, कभी किसी पक्षी के पास बैठा है तो थोड़ी ही देर में उड़कर किसी पक्षी के निकट बैठ गया, कभी किसी डाली पर बैठ जाता है तो फिर थोड़ी देर बाद किसी डाली पर बैठ गया। बैर विरोध भी इनके कुछ नहीं हैं। कभी कोई दूसरा पक्षी उस स्थान पर आये तो थोड़ा विरोधसा जँचता है किंतु वह तो एक प्राकृतिक ढंग है, लेकिन ये मनुष्य-जन एक जगह होकर इतना उपयोग होता है और इतना तीव्रराग होता है कि वियोग के समय सारे गाँव को यह जगा देता है, हल्ला मचा देता है। विरोध भी किन्हीं इष्टजनों में, परिजनों में, दो भाइयों में हो जाय तो इतना कठिन विरोध हो जाता है कि जिसकी वजह से अपनी सारी संपदा का भी विनाश कर देता है। ऐसा यह मानव उन एक जगह बसने वाले पक्षियों से भी भयावह स्थिति में अपने को बनाये रहा करता है।
विनश्वर समागमों की प्रीतिपात्रता का अभाव― भैया ! इन समागमों में प्रीति मत कर, ये थोड़ी देर को मिले हैं। जैसे मुसाफिर को सामने से आता हुआ कोई मुसाफिर मिल जाय तो वह रास्ते में कितनी देर ठहरते हैं? थोड़ी राम-राम हो गयी या अधिक बात हुई तो थोड़ी-बीड़ी सुलगा ली, चलते बने। जैसे इन मुसाफिरों का किसी चौहट्टे पर अथवा रास्ते पर मिलना अति अल्प समय का है, तुरंत ही बिछुड़ जाते हैं ऐसे ही ये संसार के सब प्राणी एक जगह कभी थोड़े से मिल गए तो अल्पकाल के ही बाद बिछुड़ जाते हैं। इन समागमों में राग मत करो। अपने स्वरूप को संभालो, इससे ही शांति का मार्ग मिलेगा।