वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-33
From जैनकोष
स्निग्धरूक्षत्वाद्बंध: ।। 5-33 ।।
पुद्गलों के परस्पर बंध का कारण स्निग्धपना व रूक्षपना―इन स्कंधों में जो बंध होता है वह स्निग्ध और रूक्षता गुण के कारण होता है । प्रकरण में और भी गुण पर्याय हैं । जैसे परमाणु ठंडा है, गरम है । पर ठंडा और गरम होने के नाते से परमाणुओं का बंध नहीं होता, किंतु स्निग्ध रूक्ष गुण के कारण होता है । जैसी ठंडी चीज के पास गरम चीज रख दी, इससे वे दोनों एक पिंड नहीं बनते, पर चिकनापन हो, कोई रूखापन हो, उनकी डिग्रियाँ होती हैं । तो उस गुण के कारण उनका बंध होता है । चिकनापन और रूखापन के अनंत भेद होते हैं । जैसे बुखार की डिग्रियां होती हैं, उनमें कई डिग्रियाँ होती हैं और तापमान से बताते जाते कि इसके इतना बुखार है । ऐसे ही स्निग्ध रूक्ष में भी बहुत प्रकार होते हैं । जैसे एक दूध को ही देखें तो बकरी का दूध जितना चिकना होता है उससे अधिक चिकना गाय का दूध होता है । गाय के दूध से भी अधिक चिकनाई भैंस तथा ऊँट के दूध में होती है । तो जैसे यहाँ दूध में चिकनाई की डिग्रियाँ देखी गईं ऐसे ही अनंत परमाणुओं में चिकनाई, रूखाई की डिग्रियाँ होती हैं । सो जब उस योग्य डिग्री वाले चिकने या रूखे परमाणु मिलते हैं लो उनका बंध हो जाता है । जैसे लोक व्यवहार में कहते हैं कि यह दूध 10 डिग्री चिकना अधिक है, यह 20 डिग्री चिकना अधिक है। तो उनमें एक (1) डिग्री तो कुछ होती है जिसको मिलकर 10 डिग्री कहा। जो एक डिग्री का चिकनापन है वह है जघन्य गुण और उससे अधिक चिकनापन जो है वह बंध के योग्य है। सो बतलाते हैं कि उसमें जो बंध होता है पुद्गल अणुओं में सो स्निग्ध और रूक्ष गुण के उस-उस प्रकार का होता है। इसी बंध को आगे कुछ बतायेंगे कि किसमें कितनी डिग्री चिकनाई रूखापन हो तो उसमें बंध हो जाये। यह सब बंध व्यवस्था विधि निषेध द्वारा आगे कहेंगे। यहाँ सामान्यतया कहा जा रहा है कि परमाणुओं एक का पिंडरूप होने का साधनभूत बंध जो देखा जाता चिकनाई और रूखेपन के कारण परमाणुओं में वह बंध होता है। स्निग्ध की व्युत्पत्ति है बाहरी और भीतरी कारण के वश से स्नेह पर्याय की प्रकटता होने से जो चिकना हो गया उसे स्निग्ध कहते हैं। सूक्ष्म की परिभाषा है कि बाह्य और आभ्यंतर निमित्त के वश से रूखा होना सो रूक्ष है। इस सूत्र में प्रथम पद में पहले तो में बंध नहीं हो सकता, सब से पहले यह बात कहते हैं । स्निग्ध और रूक्ष शब्द में द्वंद्व समास किया गया। फिर इसके बाद भाव अर्थ में तद्धित प्रत्यय जोड़ गया है। जिसकी निरुक्ति हुई―स्निग्धश्च रूक्षश्च स्निग्धरूक्षौतयो: भावा: स्निग्ध रूक्षत्वं। चिकनाई स्निग्ध गुण की पर्याय है और रूखापन रूक्षगुण की पर्याय है। तो इस चिकनाई और रूखापन के गुण के कारण परमाणुओं में बंध होता है। बंध होने पर वह स्कंध बन जाता है। जैसे दो स्निग्धरूक्ष परमाणुओं का आपस में मिलना हुआ तो बंध होने पर वह दो अणु वाला स्कंध कहलाने लगा। इसी प्रकार संख्यात असंख्यात अनंत परमाणुओं वाले स्कंध भी हो जाते हैं। एक स्निग्ध गुण में ही अनंत प्रकार के अंश होते हैं। जैसे एक डिग्री की चिकनाई, दो डिग्री की चिकनाई, 3 डिग्री की चिकनाई, ऐसे बढ़ते-बढ़ते अनंत डिग्री की चिकनाई भी अविभाग के प्रतिच्छेद होते हैं। और ऐसी अनेक डिग्री की चिकनाई वाले परमाणु होते हैं, इसी प्रकार रूक्ष गुण में भी समझना कि एक डिग्री का रूक्ष, दूसरी डिग्री का रूक्ष, ऐसे बढ़ते-बढ़ते अनंत डिग्री की भी रूक्ष पर्यायें होती हैं और ऐसे रूक्ष पर्याय वाले परमाणु होते हैं। जैसे कि पहले बताया था कि बकरी के दूध से अधिक डिग्री चिकनाई गाय के दूध में, उससे अधिक डिग्री की चिकनाई भैंस के दूध में कहा था, उसी प्रकार रूक्ष के विषय में भी जानना कि जैसे किसी मिट्टी में कोई डिग्री रूखापन है तो उससे अधिक रूखापन छोटे चावल के कणों में है, उससे अधिक रूखापन छिलकों में है। उससे अधिक रूखापन बालू में है। ऐसे रूखेपन की भी डिग्रियां बढ़ती जाती हैं। सो जब योग्य डिग्री के स्निग्ध अथवा रूक्ष परमाणु मिलते हैं तो उनका परस्पर एक पिंड बन जाता है। संयोग और बंध में अंतर है। संयोगी होने पर पिंड नहीं बनता, किंतु बंध होने पर पिंड बनता है। अब ये स्पष्ट करेंगे कि अब तक यह बात आई कि स्निग्ध और रूक्ष गुण के कारण परमाणुओं में बंध होता है तो इस सामान्य कथन से तो सभी प्रकार की डिग्रियों के स्निग्ध रूक्ष गुण के कारण परमाणुओं में बंध होने का प्रसंग आता है। तो किसमें बंध नहीं हो सकता, सबसे पहले यह बात कहते हैं।