वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-35
From जैनकोष
गुणसाम्ये सदृशानाम् ।। 5-35 ।।
स्निग्धता व रूक्षता के अंशों की समानता होने पर परमाणुओं के बंध का अभाव―गुणों की समानता होने पर सदृश परमाणुओं का बंध नहीं होता । गुणों की समानता का अर्थ है कि समान डिग्री वाले परमाणु तथा सदृश का अर्थ है तुल्य जातीय । जैसे कोई 4 डिग्री का चिकना परमाणु है, तो उनका बंध न होगा । यहाँ शंका होती है कि गुण साम्ये, इतना शब्द कहने पर ही उसका अर्थ निकल आता है, फिर सदृशानां कहने की क्या जरूरत है? इसका उत्तर यह है कि सदृश शब्द यह सूचना देता है कि समान गुण वाले तुल्य जातीय का बंध नहीं होता, किंतु भिन्न जाति में हो जायेगा । जिससे सार्थक हो जाता है । याने यहाँ सदृश ग्रहण अगर नहीं करते तो यह अर्थ होता कि गुण वाले स्निग्धों का 2 गुण वाले स्निग्ध से बंध नहीं होता । यह ध्वनित नहीं हो पाता । सदृश मायने स्निग्ध और समान डिग्री वाले हों तो भी उनका बंध नहीं होता और विसदृश भी समान डिग्री वाले हों तो स्निग्ध ही हो उनका भी बंध नही होता । सदृशानां शब्द देकर यह अर्थ बन गया कि समान डिग्री वाला परमाणु सदृश भी हैं तो भी उनका बंध नहीं होता, यह तो इष्ट था ही और यह भी अर्थ हो गया कि समान डिग्री वाले विसदृश याने स्निग्ध रूक्षों का भी बंध नहीं होता । किन्हीं के मत से सदृशानां शब्द देकर यह भी अर्थ ध्वनित हो गया कि समान गुणवाले एक जाति के परमाणुओं का याने चिकने ही चिकने या रूखे ही रूखे परमाणुओं का बंध नहीं होता याने विषम गुण हो उन परमाणुओं में तो बंध होता है, किंतु यह परंपरा सम्मत नहीं है । यहाँ तक इतनी बात कही गई कि एक डिग्री वाले रूखे चिकने परमाणुओं का बंध नहीं होता और समान डिग्री वाले रूखे चिकने परमाणुओं का भी बंध नहीं होता । तो इतना अर्थ अभी तक निकला कि विषम और अनेक डिग्री वाले परमाणुओं का बंध होता तो उसमें भी अनेक प्रकार संभव हैं । जैसे 3 डिग्री वाले कोई परमाणु हैं । दूसरे 7 डिग्री वाले हैं । उनका भी बंध हो जाना चाहिए । अनेक प्रकार होते हैं, तो उनमें भी नियम बनाने के लिए सूत्र कहते हैं ।