वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 8-19
From जैनकोष
नामगोत्रयोरष्टौ ।। 8-19 ।।
(306) नामकर्म व गोत्रकर्म के जघन्य स्थितिबंध का परिचय―नामकर्म और गोत्र कर्म का जघन्य स्थितिबंध 8 मुहूर्त का है । यह जघन्य स्थितिबंध सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में होता है । 10वें गुणस्थान के बाद रूपक श्रेणी वाला मुनि 12वें गुणस्थान में पहुंचता है या उपशम श्रेणी का हो तो वह 11वें गुणस्थान में पहुंचेगा । लेकिन 10वें गुणस्थान से ऊपर कर्म की स्थिति नहीं बँधती । अत: जघन्य स्थिति 10वें गुणस्थान में ही संभव है । तो शेष बचे हुए सर्व कर्मों की स्थिति जघन्य स्थिति एक सूत्र में बतायी जा रही है ।