GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 137 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, पापास्रव के स्वरूप का कथन है ।
बहु प्रमादवाली चर्या परिणति (अति प्रमाद से भरे हुए आचरण-रूप परिणति), कलुषता-रूप परिणति, विषय-लोलुपता-रूप परिणति, पर-परिताप-रूप परिणति (पर को दुःख देने रूप परिणति) और पर के अपवाद-रूप परिणति - यह पाँच अशुभ भाव द्रव्य-पापास्रव को निमित्त-मात्र-रूप से कारण-भूत हैं इसलिये 'द्रव्य-पापास्रव' के प्रसंग का १अनुसरण करके (अनुलक्ष करके) वे अशुभ-भाव भाव-पापास्रव हैं और वे (अशुभ भाव) जिनका निमित्त हैं ऐसे जो योग-द्वारा प्रविष्ट होने वाले पुद्गलों के अशुभ-कर्म-परिणाम (अशुभ-कर्म-रूप परिणाम) वे द्रव्य-पापास्रव हैं ॥१३७॥
१असाता-वेदनीयादि पुद्गल-परिणाम रूप द्रव्य-पापास्रव का जो प्रसंग बनता है उसमें जीव के अशुभ-भाव निमित्त-कारण हैं इसलिये 'द्रव्य-पापास्रव' प्रसंग के पीछे-पीछे उनके निमित्त-भूत अशुभ-भावों को भी 'भाव-पापास्रव' ऐसा नाम है ।