GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 139 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
पाप के अनंतर होने से, पाप के ही संवर का यह कथन है (अर्थात् पाप के कथन के पश्चात तुरन्त होने से, यहाँ पाप के ही संवर का कथन किया गया है) ।
मार्ग वास्तव में संवर है, उसके निमित्त से (उसके लिये) इन्द्रियों, कषायों तथा संज्ञाओं का जितने अंश में अथवा जितने काल निग्रह किया जाता है, उतने अंश में अथवा उतने काल पापास्रव द्वार बंद होता है ।
इन्द्रियों, कषायों और संज्ञाओं, भाव-पापास्रव, को द्रव्य-पापास्रव का हेतु (निमित्त ) पहले (१४०वी गाथा में ) कहा था, यहाँ (इस गाथा में) उनका निरोध (इन्द्रियों, कषायों और संज्ञाओं का निरोध), भाव-पाप-संवर, द्रव्य-पाप-संवर का हेतु अवधारना (समझना) ॥१३९॥