GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 145
From जैनकोष
जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा । (145)
सो तेण हवदि बंधो पोग्गलकम्मेण विविहेण ॥155॥
जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा । (145)
सो तेण हवदि बंधो पोग्गलकम्मेण विविहेण ॥155॥