GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 147 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, मिथ्यात्वादि द्रव्य-पर्यायों को (द्रव्य-मिथ्यात्वादि पुद्गल-पर्यायों को) भी (बंध के) बहिरंग-कारण-पने का १प्रकाशन है ।
ग्रंथांतर में (अन्य शास्त्र में) मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग इन चार प्रकार के द्रव्य-हेतुओं को (द्रव्य-प्रत्ययों को) आठ प्रकार के कर्मों के कारण रूप से बन्ध-हेतु कहे हैं । उन्हें भी बन्ध-हेतुपने के हेतु जीव-भाव-भूत रागादिक हैं, क्योंकि २रागादि-भावों का अभाव होने पर द्रव्य-मिथ्यात्व, द्रव्य-असंयम, द्रव्य कषाय और द्रव्य-योग के सद्भाव में भी जीव बंधते नहीं हैं । इसलिये रागादि-भावों को अंतरंग बन्ध-हेतु-पना होने के कारण ३निश्चय से बन्ध-हेतु-पना है, ऐसा निर्णय करना ॥१४७॥
इस प्रकार बंध-पदार्थ का व्याख्यान समाप्त हुआ ।
अब मोक्ष पदार्थ का व्याख्यान है ।
१प्रकाशन= प्रसिद्ध करना, समझना, दर्शाना।
२जीवगत रागादिरूप भावप्रत्ययों का अभाव होने पर द्रव्यप्रत्ययों के विद्यमानपने में भी जीव बंधते नहीं हैं। यदि जीवगत रागादिभावों के अभाव में भी द्रव्यप्रत्ययों के उदय मात्र से बंध हो तो सर्वदा बन्ध ही रहे (-मोक्ष का अवकाश ही न रहे), क्योंकि संसारियों को सदैव कर्मोदय का विद्यमानपना होता है।
३उदयगत द्रव्यमिथ्यात्वादि प्रत्ययों की भाँति रागादिभाव नवीन कर्मबन्ध में मात्र बहिरंग निमित्त नहीं हैं किन्तु वे तो नवीन कर्मबंध में 'अंतरंग निमित्त' हैं इसलिये उन्हें 'निश्चय से बंधहेतु' कहे हैं।