GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 129 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, पुण्य-पाप के योग्य भाव के स्वभाव का (स्वरूप का) कथन है।
यहाँ,
- दर्शन-मोहनीय के विपाक से जो कलुषित परिणाम वह मोह है,
- विचित्र (अनेक-प्रकार के) चारित्र-मोहनीय का विपाक जिसका आश्रय (निमित्त) है ऐसी प्रीति-अप्रीति वह राग-द्वेष है,
- उसी के (चारित्र-मोहनीय के ही) मंद उदय से होने वाले जो विशुद्ध परिणाम वह १चित्त-प्रसाद परिणाम (मन की प्रसन्नता-रूप परिणाम) है ।
१प्रसाद= प्रसन्नता, विशुद्धता, उज्ज्वलता ।