कर्मक्षपण (कर्मक्षयविधि)
From जैनकोष
एक व्रत । इसकी साधना के लिए नामकर्म को (तेरानवें प्रकृतियों के साथ समस्त कर्मों की एक सौ अड़तालीस उत्तरप्रकृतियों को लक्ष्य करके एक सौ अड़तालीस उपवास किये जाते हैं) । एक उपवास और एक पारणा के क्रम से यह व्रत दो सौ छियानवे दिनों में पूर्ण होता है । महापुराण 7.18, हरिवंशपुराण 34.321