नित्यरसी व्रत
From जैनकोष
वर्ष में एक बार आता है। ज्येष्ठ कृ.1 से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक कृ.1 को उपवास तथा 2-15 तक एकाशना करें। फिर शु.1 को उपवास और 2-15 तक एकाशना करें। जघन्य 1 वर्ष, मध्यम 12 वर्ष और उत्कृष्ट 24 वर्ष तक करना पड़ता है। ‘ॐ ह्रीं श्री वृषभजिनाय नम:’ इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे। (व्रत विधान संग्रह/पृ.102)।