अर्थापत्ति
From जैनकोष
राजवार्तिक अध्याय 6/9/6/516/9 यथा हि असति हि मेघे वृष्टिर्नास्तीत्युक्ते अर्थादापन्नं सति मेघे वृष्टिस्तीति।
= जैसे `मेघके अभावमें वृष्टि नहीं होती' ऐसा कहने पर अर्थापत्तिसे ही जाना जाता है कि मेघके होनेपर वृष्टि होती है।
2.अर्थापत्तिमें अनैकांतिक दोषका निरास
राजवार्तिक अध्याय 6/9/6/516/10 सत्यपि मेघे कदाचिद्वृष्टिर्नास्तीत्यर्थापत्तिरनैकांतिकीतिः तन्नः किं कारणम्। प्रयासमात्रत्वात्। प्रयासमात्रमेतत् अर्थापत्तिरनैकांतिकीति? `अहिंसा धर्मः' इत्युक्ते अर्थापत्त्या `हिंसा अधर्मः' इति न सिद्ध्यति। सिद्ध्यत्येव। असति मेघे न वृष्टिरित्युक्ते सति मेघे वृष्टिरित्यत्रापि सत्येव मेघे इतिनास्तिदोषः।
= प्रश्न-मेघोंके होनेपर भी कदाचित् वृष्टि नहीं होती है, इसलिए अर्थापत्ति अनैकांतिकी है? उत्तर-नहीं, क्योंकि, इस प्रकार अर्थापत्तिकी अनैकांतिकी सिद्ध करनेका यह आपका प्रयास मात्र है। `अहिंसा धर्म है' ऐसो कहनेपर अर्थापत्तिसे ही क्या यह सिद्ध नहीं हो जाता कि `हिंसा अधर्म है'? होता ही है। कभी मेघके होनेपर ही वृष्टिके न देखे जानेसे इतना ही कह सकते हैं, कि वृष्टि `मेघके होनेपर ही होगी' अभावमें नहीं।
3. अर्थापत्तिका श्रुतज्ञानमें अंतर्भाव
राजवार्तिक अध्याय 1/20/15/78/23 एतेषामप्यर्थापत्त्यादीनाम् अनुक्तानामनुमानसमानमिति पूर्ववत् श्रुतांतर्भावः।
= न कहे गये जो अर्थापत्ति आदि प्रमाण हैं उन सबका, अनुमान समान होनेके कारण श्रुतज्ञानमें अंतर्भाव हो जाता है।