प्राकार
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
धवला 14/5,6,42/40/7 जिणहरादीणं रक्खट्ठंप्पासेसु ट्ठविदओलित्तीओ पागारा णाम । पक्किटाहि घडिदवरंडा वा पागारा णाम । = जिनगृह आदि की रक्षा के लिए पार्श्व में जो भीतें बनायी जाती हैं वे प्राकार कहलाती हैं, अथवा पकी हुई ईंटों जो वरंडा बनाये जाते हैं वे प्राकार कहलाते हैं ।
पुराणकोष से
समवसरण की शोभा के लिए उसके चारों ओर निर्मित ऊंची दीवार । इसमें चारों दिशाओं में गोपुरों की रचना की जाती है । प्राचीनकाल में नगरों की रक्षा के लिए भी प्राकार बनाये जाते थे । महापुराण 16.169,19.57-62, पद्मपुराण 2.49, 135, हरिवंशपुराण 2.65