विद्युच्चर
From जैनकोष
वृ. कथाकोष/कथा नं. 4/पृ. अस्थिरचित्त सोमदत्त से आकाशगामी विद्या का साधन पूछकर स्वयं विद्या सिद्धकरली। फिर चैत्यालयों की वंदना की।13। दीक्षा ले।14। स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुआ।15।
वृ. कथाकोष/कथा नं. 4/पृ. अस्थिरचित्त सोमदत्त से आकाशगामी विद्या का साधन पूछकर स्वयं विद्या सिद्धकरली। फिर चैत्यालयों की वंदना की।13। दीक्षा ले।14। स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुआ।15।