कल्याण
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
चौदह पूर्वों में ग्यारहवाँ पूर्व । इसमें छब्बीस करोड़ पद है इन पदों में सूर्य, चंद्रमा आदि ज्योतिषी देवों के संचार का, सुरेंद्र और असुरेंद्रकृत त्रेसठ शलाकापुरुषों के कल्याण का तथा स्वप्न, अंतरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण और छिन्न इन अष्टांग निमित्तों और अनेक शकुनों का वर्णन है । हरिवंशपुराण - 2.99,हरिवंशपुराण - 2.10-117
अधिक जानकारी के लिए देखें श्रुतज्ञान - III
पुराणकोष से
(1) मुनि आनंदमाल का भाई ऋद्धिधारी साधु का नाम कल्याण था। अपने भाई के निंदक इंद्र विद्याधर को इसने शाप दिया था कि आनंदमाल का तिरस्कार करने के कारण उसे भी तिरस्कार मिलेगा । अपने दीर्घ और उष्ण निःश्वास से यह उसे दग्ध ही कर देना चाहता था किंतु विद्याधर की पत्नी सर्वश्री ने इसे शांत कर दिया था पद्मपुराण 13.86-89
(2) तीर्थंकरों के पंचकल्याणक । महापुराण 6.143
(3) विवाह । महापुराण 71.144,63.117
(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.193