वैधर्म्य
From जैनकोष
- सप्तभंगीतरंगिणी/53/3 –वैधर्म्यं च साध्याभावाधिकरणावृत्तित्वेन निश्चितत्वम्। = साध्य के अभाव के अधिकरण में जिसका अवृत्तित्व अर्थात् न रहना निश्चित हो उसको वैधर्म्य कहते हैं। दृष्टांत के दो भेदों में से एक हैं, वैधर्म्य|
- उदाहरण का एक भेद–देखें वैधर्म्य सामान्य का लक्षण ।