स्तुति
From जैनकोष
- पूर्व व पश्चात् स्तुति नामक आहार का एक दोष-देखें आहार - II.4।
- स्तुति संबंधी विषय-देखें भक्ति - 3।
- न्या.द./टी.2/1/64/100/25 विधे: फलवादलक्षणा या प्रशंसा या स्तुति: संप्रत्ययार्थं स्तूयमानं श्रद्दधीतेति। प्रवर्त्तिका च फलश्रवणात् प्रवतंते सर्वजिता वै देवा: सर्वमजयन् सर्वस्वाप्त्यै सर्वस्य जित्यै सर्वमेवैतेनाप्नोति सर्वं जयतीत्येवमादि। = विधि वाक्य के फल कहने से जो प्रशंसा है, उसे स्तुति कहते हैं क्योंकि फल की प्रशंसा सुनने से प्रवृत्ति होती है। उदाहरण, जैसे-देवों ने इस यज्ञ को करके यज्ञ को जीता, इस यज्ञ के करने से सब कुछ प्राप्त होता है इत्यादि।