स्वास्थ्य
From जैनकोष
1. स्वास्थ्य का लक्षण
समाधिशतक/39 यदा मोहात्प्रजायेत रागद्वेषौ तपस्विन:। तदैव भावयेत्स्वस्थमात्मानं शाम्यत: क्षणात् ।39। =जिस समय तपस्वी के मोह के उदय से रागद्वेष उत्पन्न हो जावें, उस समय तपस्वी अपने स्वास्थ्य (आत्म स्वरूप) की भावना करे, इससे वे क्षणभर में शांत हो जाते हैं।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/7/37/17 बंधरहिता निर्जरा स्वास्थ्यं प्रापयति नेतरा बंधसहभाविनीति। =बंध रहित निर्जरा ही स्वास्थ्य अर्थात् मोक्ष प्रदान करती है, परंतु बंधसहभाविनी निर्जरा मुक्ति का कारण नहीं।
सामायिक पाठ/अमित./24 न संति बाह्या: मम केचनार्था: भवामि तेषां न कदाचनाहम् । इत्थं विनिश्चिंत्य विमुच्य बाह्या: स्वस्थं तदा त्वं भव द्र मुक्त्यै।24। =कुछ भी बाह्य पदार्थ मेरे नहीं है, और मैं भी उनका कभी नहीं हूँ। ऐसा सोचकर तथा समस्त बाह्य को छोड़कर, हे भद्र ! तू मुक्ति के लिए स्वस्थ हो जा।
देखें स्वार्थ में सं स्तो. आत्मोपयोग ही स्वास्थ्य है।
पं.वि./4/64 साम्यं स्वास्थ्यं समाधिश्च योगश्चेतोनिरोधनम् । शुद्धोपयोग इत्येते भवत्येकार्थवाचका:।64। =साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चित्तनिरोध, और शुद्धोपयोग एकार्थवाची हैं।
* अन्य संबंधित विषय
- परम स्वास्थ्य के अपर नाम-देखें मोक्षमार्ग - 2.5।
- स्वास्थ्यबाधक पदार्थ अभक्ष्य हैं-देखें भक्ष्याभक्ष्य - 1.3।