लौकिक
From जैनकोष
- लौकिक जन संगति का विधि-निषेध−देखें संगति ।
- प्रवचनसार/253, 269 लोगिगजणसंभासा [शुद्धात्मवृत्ति-शून्यजनसंभाषण (त. प्र.)]।253। णिग्गंथं पव्वइदो वट्टदि जदि एहिगेहि कम्मेहिं। सो लोगिगो त्ति भणिदो संजमतवसंपजुत्तेवि।269। = लौकिक जनसंभाषण अर्थात् शुद्धात्म परिणति शून्य लोकों के साथ बातचीत....।253। जो (जीव) निर्ग्रंथ रूप से दीक्षित होने के कारण संयम तप संयुक्त हो उसे भी यदि वह ऐहिक कार्यों (ख्याति-लाभ-पूजा के निमित्त ज्योतिष, मंत्र, वादित्व आदि ‘ता. वृ.’) सहित वर्तता हो तो लौकिक कहा गया है।269।
दूसरे नरक का नवमा पटल−देखें नरक - 5.11।