उपघात: Difference between revisions
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<p class="HindiText">= जिसके निमित्तसे स्वयंकृत उद्बंधन और | <p class="HindiText">= जिसके निमित्तसे स्वयंकृत उद्बंधन और पहाड़से गिरना आदि निमित्तक उपघात होता है वह उपघात नामकर्म है।</p> | ||
<p>(राजवार्तिक अध्याय 8/11/13/578/1)।</p> | <p>(राजवार्तिक अध्याय 8/11/13/578/1)।</p> | ||
<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 6/1,9,1,28/59/1 उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः। जं कम्मं जीवपीडाहेउ अवयवे कुणदि, जीवपीड हेवुदव्वाणि वा विसासिपासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम। के | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 6/1,9,1,28/59/1 उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः। जं कम्मं जीवपीडाहेउ अवयवे कुणदि, जीवपीड हेवुदव्वाणि वा विसासिपासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम। के जीवपीड़ा कार्यवयवा इति चेन्महाशंग-लंबस्तन-तुंदोदरादयः। जदि उवघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो सरीरादो वाद-पित्त-सेंभदूसिदादो जीवस्स पीडा ण होज्ज। ण च एवं, अणुवलंभादो।</p> | ||
<p class="HindiText">= स्वयं प्राप्त होनेवाले घातको उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं। जो कर्म अवयवोंको जीवकी | <p class="HindiText">= स्वयं प्राप्त होनेवाले घातको उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं। जो कर्म अवयवोंको जीवकी पीड़ाका कारण बना देता है, अथवा विष, शृंग, खंग, पाश आदि जीव पीड़ाके कारण स्वरूप द्रव्योंको जीवके लिए ढोता है, अर्थात् लाकर संयुक्त करता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है। प्रश्न-जीवको पीड़ा करनेवाले अवयव कौन-कौन हैं? उत्तर-महाशृंग (बारहसिंगाके समान बड़े सींग), लंबे स्तन, विशाल तोंदवाला पेट आदि जीवको पीड़ा करनेवाले अवयव हैं। यदि उपघात-नामकर्म न हो तो बात, पित्त और कफसे दूषित शरीरसे जीवके पीड़ा नहीं होनी चाहिए। किंतु ऐसा है नहीं, क्योंकि वैसा पाया नहीं जाता।</p> | ||
<p>( धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/11); ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/18)।</p> | <p>( धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/11); ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/18)।</p> | ||
<p>• उपघात नामकर्म व असाता वेदनीयमें परस्पर संबंध - देखें [[ वेदनीय#2 | वेदनीय - 2]]</p> | <p>• उपघात नामकर्म व असाता वेदनीयमें परस्पर संबंध - देखें [[ वेदनीय#2 | वेदनीय - 2]]</p> | ||
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Revision as of 19:51, 4 August 2022
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6/10/327/13 प्रशस्तज्ञानदूषणमुपधातः। आसादनमेवेति चेत्। सतो ज्ञानस्य विनयप्रदानादिगुणकीर्तनाननुष्ठानमासादनम्। उपघातस्तु ज्ञानमज्ञानमेवेति ज्ञाननाशाभिप्रायः। इत्यनयोरयं भेदः।
= प्रशंसनीय ज्ञानमें दूषण लगाना उपघात है। प्रश्न-उपघातका जो लक्षण किया है उससे वह आसादन ही ज्ञात होता है? उत्तर-प्रशस्त ज्ञानकी विनय न करना, उसकी अच्छाई की प्रशंसा न करना आदि आसादन है। परंतु ज्ञानको अज्ञान समझकर ज्ञानके नाशका इरादा रखना उपघात है इस प्रकार दोनोंमें अंतर है।
(राजवार्तिक अध्याय 6/10/7/517/23)।
राजवार्तिक अध्याय 6/10/6/517/21 स्वमतेः कलुषभावाद् युक्तस्याप्ययुक्तवत्प्रतीतेः दोषोद्भावनं दूषणमुपघात इति विज्ञायते।
= हृदयकी कलुषताके कारण अपनी बुद्धिमें युक्तकी भी अयुक्तवत् प्रतीति होनेपर, दोषोंको प्रगट करके उत्तम ज्ञानको दूषण लगाना उपघात है।
गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 800/979/8 मनसा वाचा वा प्रशस्तज्ञानदूषणमध्येतृषु क्षुद्रबाधाकरणं वा उपघातः।
= मनकरि वा वचनकरि प्रशस्तज्ञानका दोषी होना, वा अभ्यासक जीवनिकौ क्षुधादिक बाधाका करना सो उपघात कहिए।
2. उपघात नाम कर्मका लक्षण
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/391/3 यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बंधनमेरुप्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम।
= जिसके निमित्तसे स्वयंकृत उद्बंधन और पहाड़से गिरना आदि निमित्तक उपघात होता है वह उपघात नामकर्म है।
(राजवार्तिक अध्याय 8/11/13/578/1)।
धवला पुस्तक 6/1,9,1,28/59/1 उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः। जं कम्मं जीवपीडाहेउ अवयवे कुणदि, जीवपीड हेवुदव्वाणि वा विसासिपासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम। के जीवपीड़ा कार्यवयवा इति चेन्महाशंग-लंबस्तन-तुंदोदरादयः। जदि उवघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो सरीरादो वाद-पित्त-सेंभदूसिदादो जीवस्स पीडा ण होज्ज। ण च एवं, अणुवलंभादो।
= स्वयं प्राप्त होनेवाले घातको उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं। जो कर्म अवयवोंको जीवकी पीड़ाका कारण बना देता है, अथवा विष, शृंग, खंग, पाश आदि जीव पीड़ाके कारण स्वरूप द्रव्योंको जीवके लिए ढोता है, अर्थात् लाकर संयुक्त करता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है। प्रश्न-जीवको पीड़ा करनेवाले अवयव कौन-कौन हैं? उत्तर-महाशृंग (बारहसिंगाके समान बड़े सींग), लंबे स्तन, विशाल तोंदवाला पेट आदि जीवको पीड़ा करनेवाले अवयव हैं। यदि उपघात-नामकर्म न हो तो बात, पित्त और कफसे दूषित शरीरसे जीवके पीड़ा नहीं होनी चाहिए। किंतु ऐसा है नहीं, क्योंकि वैसा पाया नहीं जाता।
( धवला पुस्तक 13/5,5,101/364/11); ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/29/18)।
• उपघात नामकर्म व असाता वेदनीयमें परस्पर संबंध - देखें वेदनीय - 2
• उपघात प्रकृतिकी बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ - देखें वह वह नाम
पुराणकोष से
असमय में मरण । तीर्थंकरों के उपघात नहीं होता । महापुराण 15.31