चंडवेग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) भरत का दंडरत्न । <span class="GRef"> महापुराण 37.170, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.22 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) भरत का दंडरत्न । <span class="GRef"> महापुराण 37.170, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.22 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा विद्युद्वेग का पुत्र । इसकी मदनवेगा नाम की बहिन थी । मदनवेगा के पति के बारे में एक अवधिज्ञानी मुनि ने कहा था कि गंगा में विद्या सिद्ध करते हुए इसके कंधे पर जो गिरेगा यही इसका पति होगा । इसके पिता ने इसे गंगा में विद्या-सिद्धि के लिए नियोजित किया था । वसुदेव गंगास्नान के लिए आया था । वहीं संयोग से वह इसके कंधे पर गिरा । इसने उसे अनेक विद्याशस्त्र दिये थे । वसुदेव ने त्रिशिखर विद्याधर के साथ जिसने इसके पिता को बांधकर कारागृह मे डाल दिया था, युद्ध करके माहेंद्रास्त्र के द्वारा उसका सिर काट डाला था और इसके पिता को बंधन मुक्त कराया था तथा मदनवेगा प्राप्त की थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 25.38-71 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) राजा विद्युद्वेग का पुत्र । इसकी मदनवेगा नाम की बहिन थी । मदनवेगा के पति के बारे में एक अवधिज्ञानी मुनि ने कहा था कि गंगा में विद्या सिद्ध करते हुए इसके कंधे पर जो गिरेगा यही इसका पति होगा । इसके पिता ने इसे गंगा में विद्या-सिद्धि के लिए नियोजित किया था । वसुदेव गंगास्नान के लिए आया था । वहीं संयोग से वह इसके कंधे पर गिरा । इसने उसे अनेक विद्याशस्त्र दिये थे । वसुदेव ने त्रिशिखर विद्याधर के साथ जिसने इसके पिता को बांधकर कारागृह मे डाल दिया था, युद्ध करके माहेंद्रास्त्र के द्वारा उसका सिर काट डाला था और इसके पिता को बंधन मुक्त कराया था तथा मदनवेगा प्राप्त की थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_25#38|हरिवंशपुराण - 25.38-71]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
(1) भरत का दंडरत्न । महापुराण 37.170, पांडवपुराण 7.22
(2) राजा विद्युद्वेग का पुत्र । इसकी मदनवेगा नाम की बहिन थी । मदनवेगा के पति के बारे में एक अवधिज्ञानी मुनि ने कहा था कि गंगा में विद्या सिद्ध करते हुए इसके कंधे पर जो गिरेगा यही इसका पति होगा । इसके पिता ने इसे गंगा में विद्या-सिद्धि के लिए नियोजित किया था । वसुदेव गंगास्नान के लिए आया था । वहीं संयोग से वह इसके कंधे पर गिरा । इसने उसे अनेक विद्याशस्त्र दिये थे । वसुदेव ने त्रिशिखर विद्याधर के साथ जिसने इसके पिता को बांधकर कारागृह मे डाल दिया था, युद्ध करके माहेंद्रास्त्र के द्वारा उसका सिर काट डाला था और इसके पिता को बंधन मुक्त कराया था तथा मदनवेगा प्राप्त की थी । हरिवंशपुराण - 25.38-71