टोडरमल: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> रहस्यपूर्ण चिट्ठी। आप शास्त्र रचना में इतने संलग्न रहते थे कि 6 महीने तक, जब तक कि गोम्मट्टसार की टीका पूर्ण न हो गयी, आपको यह भी भान न हुआ माता भोजन में नमक नहीं डालती है। आप अत्यंत विरक्त थे। उनकी विद्वत्ता व अजेय तर्कों से चिड़कर किसी विद्वेषी ने राजा से उनकी चुगुली खायी। फलस्वरूप केवल 32 वर्ष की आयु में उन्हें हाथी के पाँव के तले रौंदकर मार डालने का दंड दिया गया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार ही न किया बल्कि इस पापकार्य में प्रवृत्ति न करते हुए हाथी को स्वयं संबोधकर प्रवृत्ति भी करायी। समय–जन्म वि.1797, मृत्यु वि.1824 (ई.1740-1767)। ( मोक्षमार्ग प्रकाशक/ प्र.9/पं.परमानंद जी शास्त्री), (ती./4/283)। </li> | <li class="HindiText"> रहस्यपूर्ण चिट्ठी। आप शास्त्र रचना में इतने संलग्न रहते थे कि 6 महीने तक, जब तक कि गोम्मट्टसार की टीका पूर्ण न हो गयी, आपको यह भी भान न हुआ माता भोजन में नमक नहीं डालती है। आप अत्यंत विरक्त थे। उनकी विद्वत्ता व अजेय तर्कों से चिड़कर किसी विद्वेषी ने राजा से उनकी चुगुली खायी। फलस्वरूप केवल 32 वर्ष की आयु में उन्हें हाथी के पाँव के तले रौंदकर मार डालने का दंड दिया गया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार ही न किया बल्कि इस पापकार्य में प्रवृत्ति न करते हुए हाथी को स्वयं संबोधकर प्रवृत्ति भी करायी। समय–जन्म वि.1797, मृत्यु वि.1824 (ई.1740-1767)। (<span class="GRef"> मोक्षमार्ग प्रकाशक/ </span>प्र.9/पं.परमानंद जी शास्त्री), (ती./4/283)। </li> | ||
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Revision as of 13:00, 14 October 2020
नगर-जयपुर, पिता का नाम-जोगीदास, माता का नाम-रंभादेवी, गोत्र-गोदीका (बड़ जातीया), जाति-खंडेलवाल, पंथ-तेरापंथ, गुरु-वंशीधर थे। व्यवसाय-साहूकारी था। जैन आम्नाय में आप अपने समय में एक क्रांतिकारी पंडित हुए हैं। आपके दो पुत्र थे हरिचंद व गुमानीराम। आपने निम्न रचनाएँ की हैं–
- गोमट्टसार;
- लब्धिसार;
- क्षपणासार;
- त्रिलोकसार;
- आत्मानुशासन,
- पुरुषार्थ सिद्धयुपाय–इन छह ग्रंथों की टीकाएँ।
- गोमट्टसार व लब्धिसार की अर्थ संदृष्टियाँ,
- गोम्मट्टसार पूजा,
- मोक्षमार्ग प्रकाशक;
- रहस्यपूर्ण चिट्ठी। आप शास्त्र रचना में इतने संलग्न रहते थे कि 6 महीने तक, जब तक कि गोम्मट्टसार की टीका पूर्ण न हो गयी, आपको यह भी भान न हुआ माता भोजन में नमक नहीं डालती है। आप अत्यंत विरक्त थे। उनकी विद्वत्ता व अजेय तर्कों से चिड़कर किसी विद्वेषी ने राजा से उनकी चुगुली खायी। फलस्वरूप केवल 32 वर्ष की आयु में उन्हें हाथी के पाँव के तले रौंदकर मार डालने का दंड दिया गया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार ही न किया बल्कि इस पापकार्य में प्रवृत्ति न करते हुए हाथी को स्वयं संबोधकर प्रवृत्ति भी करायी। समय–जन्म वि.1797, मृत्यु वि.1824 (ई.1740-1767)। ( मोक्षमार्ग प्रकाशक/ प्र.9/पं.परमानंद जी शास्त्री), (ती./4/283)।