निर्विकृति: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p>सा.ध./टीका/ | <p>सा.ध./टीका/5/35 <span class="SanskritText">विक्रियते जिह्वामनसि येनेति विकृतिर्गोरसेक्षुरसफलरसधान्यरसभेदाच्चतुर्विधा। तत्र गोरस: क्षीरघृतादि, इक्षुरस: खण्डगुडादि, फलरसो द्राक्षाम्रादिनिष्यन्द:, धान्यरसस्तैलमण्डादि:। अथवा यद्येन सह भुज्यमानं स्वदते तत्तत्र विकृतिरित्युच्यते। विकृतिर्निष्क्रान्तं भोजनं निर्विकृति।</span> =</p> | ||
<ol class="HindiText"> | <ol class="HindiText"> | ||
<li> जिसके आहार से जिह्वा और मन में विकार पैदा होता है उसे विकृति कहते हैं। जैसे–दूध, घी आदि गोरस, | <li> जिसके आहार से जिह्वा और मन में विकार पैदा होता है उसे विकृति कहते हैं। जैसे–दूध, घी आदि गोरस, खाण्ड, गुड आदि इक्षुरस, दाख, आम आदि फलरस और तेल माण्ड आदि धान्य रस। ऐसे चार प्रकार के रस विकृति हैं। ये जिस आहार में न हों वह निर्विकृति है।</li> | ||
<li> अथवा जिसको मिलाकर भोजन करने से भोजन में विशेष | <li> अथवा जिसको मिलाकर भोजन करने से भोजन में विशेष स्वाद आता है उसको विकृति कहते हैं। (जैसे–साग, चटनी आदि पदार्थ।) इस विकृति रहित भोजन अर्थात् व्यंजनादिक से रहित भात आदि का भोजन निर्विकृति है। (भ.आ./मूलाराधना टीका/254/475/19)। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
<noinclude> | |||
[[ | [[ निर्वाह | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:न]] | [[ निर्विचिकित्सा | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: न]] |
Revision as of 21:43, 5 July 2020
सा.ध./टीका/5/35 विक्रियते जिह्वामनसि येनेति विकृतिर्गोरसेक्षुरसफलरसधान्यरसभेदाच्चतुर्विधा। तत्र गोरस: क्षीरघृतादि, इक्षुरस: खण्डगुडादि, फलरसो द्राक्षाम्रादिनिष्यन्द:, धान्यरसस्तैलमण्डादि:। अथवा यद्येन सह भुज्यमानं स्वदते तत्तत्र विकृतिरित्युच्यते। विकृतिर्निष्क्रान्तं भोजनं निर्विकृति। =
- जिसके आहार से जिह्वा और मन में विकार पैदा होता है उसे विकृति कहते हैं। जैसे–दूध, घी आदि गोरस, खाण्ड, गुड आदि इक्षुरस, दाख, आम आदि फलरस और तेल माण्ड आदि धान्य रस। ऐसे चार प्रकार के रस विकृति हैं। ये जिस आहार में न हों वह निर्विकृति है।
- अथवा जिसको मिलाकर भोजन करने से भोजन में विशेष स्वाद आता है उसको विकृति कहते हैं। (जैसे–साग, चटनी आदि पदार्थ।) इस विकृति रहित भोजन अर्थात् व्यंजनादिक से रहित भात आदि का भोजन निर्विकृति है। (भ.आ./मूलाराधना टीका/254/475/19)।