बहिरात्मा: Difference between revisions
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मो.पा./मू./ | मो.पा./मू./8.9 <span class="SanskritGatha">बहिरत्थे फुरियमणो इंदियदारेण णियसरूवचुओ । णियदेहं अप्पाणं अज्झवसदि मूढदिट्ठीओ ।8। णियदेहसरित्थं पिच्छिऊण परविग्गहं पयत्तेण । अच्चेयणं पि गहियं झाइज्जइ परमभाएण ।9। </span>=<span class="HindiText"> बाह्य धनादिक में स्फुरत् अर्थात् तत्पर है मन जिसका, वह इन्द्रियों के द्वारा अपने स्वरूप से च्युत है अर्थात् इन्द्रियों को ही आत्मा मानता हुआ अपनी देह को ही आत्मा निश्चय करता है, ऐसा मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा है ।8। (स.श./7) (प.प्र./मू./1/13) वह बहिरात्मा मिथ्यात्व भाव से जिस प्रकार अपने देह को आत्मा मानता है, उसी प्रकार पर का देह को देख अचेतन है फिर भी उसको आत्मा मानै है, और उसमें बड़ा यत्न करता है ।9।</span><br /> | ||
नि.सा./मू./ | नि.सा./मू./149-151 ... <span class="PrakritText">आवासयपरिहीणो समणो सो होदि बहिरप्पा ।149। अंतरबाहिरजप्पे जो वट्टइ सो हवेइ बहिरप्पा ...।150। ... झाणविहीणो समणो बहिरप्पा इदि विजाणीहि ।151। </span>= <span class="HindiText">षट् आवश्यक क्रियाओं से रहित श्रमण वह बहिरात्मा है । 149। और जो अन्तर्बाह्य जल्प में वर्तता है, वह बहिरात्मा है ।150। अथवा ध्यान से रहित आत्मा बहिरात्मा है ऐसा जान ।151। </span><br /> | ||
र.सा./ | र.सा./135-137 <span class="PrakritGatha">अप्पाणाणज्झाणज्झयणसुहमियरसायणप्पाणं । मोत्तूणक्खाणसुहं जो भुंजइ सो हु बहिरप्पा ।135। देहकलत्तं पुत्तं मित्ताइ विहावचेदणारूवं । अप्पसरूवं भावइ सो चेव हवेइ बहिरप्पा ।137।</span> = <span class="HindiText">अपनी आत्मा के ज्ञान, ध्यान व अध्ययन रूप सुखामृत को छोड़कर इन्द्रियों के सुख को भोगता है, सो ही बहिरात्मा है ।135। देह, कलत्र, पुत्र व मित्रादिक जो चेतना के विभाविक रूप हैं, उनमें अपनापने की भावना करनेवाला बहिरात्मा होता है ।137।</span><br /> | ||
यो.सा.यो./ | यो.सा.यो./7 <span class="PrakritGatha">मिच्छा-दंसण-मोहियउ परु अप्पा ण मुणेइ । सो बहिरप्पा जिण भणिउ पुण संसार भमेइ ।7। </span>= <span class="HindiText">जो मिथ्यादर्शन से मोहित जीव परमात्मा को नहीं समझता, उसे जिन भगवान् ने बहिरात्मा कहा है, वह जीव पुनः पुनः संसार में परिभ्रमण करता है ।7।</span><br /> | ||
ज्ञानसार/ | ज्ञानसार/30 <span class="SanskritGatha">मदमोहमानसहितः रागद्वेषैर्नित्यसंतप्तः । विषयेषु, तथा शुद्धः बहिरात्मा भण्यते सैषः ।30।</span> = <span class="HindiText">जो मद, मोह व मान सहित है, राग-द्वेष से नित्य संतप्त रहता है, विषयों में अति आसक्त है, उसे बहिरात्मा कहते हैं ।30।</span><br /> | ||
का./अ./मू./ | का./अ./मू./193 <span class="PrakritGatha">मिच्छत्त- परिणदप्पा तिव्व- कसाएण सुट्ठु आविट्ठो । जीवं देहं एक्कं मण्णं तो होदि बहिरप्पा ।193।</span> = <span class="HindiText">जो जीव मिथ्यात्व कर्म के उदय रूप परिणत हो, तीव्र कषाय से अच्छी तरह आविष्ट हो, और जीव तथा देह को एक मानता हो, वह बहिरात्मा है ।193। </span><br /> | ||
प्र.सा./ता.वृ./ | प्र.सा./ता.वृ./238/329/12 <span class="SanskritText">मिथ्यात्वरागादिरूपा बहिरात्मावस्था ।</span> = <span class="HindiText">मिथ्यात्व व राग-द्वेषादि कषायों से मलीन आत्मा की अवस्था को बहिरात्मा कहते हैं । </span><br /> | ||
द्र.सं./टी./ | द्र.सं./टी./14/46/8 <span class="SanskritText">स्वशुद्धात्मसंवित्तिसमुत्पन्नवास्तवसुखात्प्रतिपक्षभूतेनेन्द्रियसुखेनासक्तो बहिरात्मा, ... अथवा देहरहितनिजशुद्धात्मद्रव्यभावनालक्षणभेदज्ञानरहितत्वेन देहादिपरद्रव्येष्वेकत्वभावनापरिणतो बहिरात्मा, ... अथवा हेयोपादेयविचारकचित्तं निर्दोष परमात्मनो भिन्ना रागादयो दोषाः, शुद्धचैतन्यलक्षण आत्मा, इत्युक्तलक्षणेषु चित्तदोषात्मासु त्रिषु वीतरागसर्वज्ञप्रणीतेषु अन्येषु वा पदार्थेषु यस्य परस्परसापेक्षनयविभागेन श्रद्धानं ज्ञानं च नास्ति स बहिरात्मा ।</span> = | ||
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<li class="HindiText"> निज शुद्धात्मा के अनुभव से उत्पन्न यथार्थ सुख से विरुद्ध जो इन्द्रिय सुख उसमें आसक्त सो बहिरात्मा है । </li> | <li class="HindiText"> निज शुद्धात्मा के अनुभव से उत्पन्न यथार्थ सुख से विरुद्ध जो इन्द्रिय सुख उसमें आसक्त सो बहिरात्मा है । </li> | ||
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का.अ./टी./ | का.अ./टी./193<span class="SanskritText"> उत्कृष्टा बहिरात्मा गुणस्थानादिमे स्थितः । द्वितीये मध्यमा, मिश्रे गुणस्थाने जघन्यका इति ।</span> = <span class="HindiText">प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान में जीव उत्कृष्ट बहिरात्मा है, दूसरे सासादन गुणस्थान में स्थित मध्यम बहिरात्मा है, और तीसरे गुणस्थान वाले जघन्य बहिरात्मा है ।</span></li> | ||
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== पुराणकोष से == | |||
<p> देह और देही को एक मानने वाला व्यक्ति । यह तत्त्व-अतत्त्व में गुण-अवगुण में, सुगुरू-कुगुरू में, धर्म-धर्म में, शुभ-अशुभ मार्ग में, जिनसूत्र-कुशास्त्र में, देव-अदेव में और हेयोपादेय के विचार में विवेक नहीं करता । तप, श्रुत और व्रत से युक्त होकर भी यह स्व-पर विवेक से रहित होता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.67-72 </span></p> | |||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- स्वरूप व लक्षण
मो.पा./मू./8.9 बहिरत्थे फुरियमणो इंदियदारेण णियसरूवचुओ । णियदेहं अप्पाणं अज्झवसदि मूढदिट्ठीओ ।8। णियदेहसरित्थं पिच्छिऊण परविग्गहं पयत्तेण । अच्चेयणं पि गहियं झाइज्जइ परमभाएण ।9। = बाह्य धनादिक में स्फुरत् अर्थात् तत्पर है मन जिसका, वह इन्द्रियों के द्वारा अपने स्वरूप से च्युत है अर्थात् इन्द्रियों को ही आत्मा मानता हुआ अपनी देह को ही आत्मा निश्चय करता है, ऐसा मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा है ।8। (स.श./7) (प.प्र./मू./1/13) वह बहिरात्मा मिथ्यात्व भाव से जिस प्रकार अपने देह को आत्मा मानता है, उसी प्रकार पर का देह को देख अचेतन है फिर भी उसको आत्मा मानै है, और उसमें बड़ा यत्न करता है ।9।
नि.सा./मू./149-151 ... आवासयपरिहीणो समणो सो होदि बहिरप्पा ।149। अंतरबाहिरजप्पे जो वट्टइ सो हवेइ बहिरप्पा ...।150। ... झाणविहीणो समणो बहिरप्पा इदि विजाणीहि ।151। = षट् आवश्यक क्रियाओं से रहित श्रमण वह बहिरात्मा है । 149। और जो अन्तर्बाह्य जल्प में वर्तता है, वह बहिरात्मा है ।150। अथवा ध्यान से रहित आत्मा बहिरात्मा है ऐसा जान ।151।
र.सा./135-137 अप्पाणाणज्झाणज्झयणसुहमियरसायणप्पाणं । मोत्तूणक्खाणसुहं जो भुंजइ सो हु बहिरप्पा ।135। देहकलत्तं पुत्तं मित्ताइ विहावचेदणारूवं । अप्पसरूवं भावइ सो चेव हवेइ बहिरप्पा ।137। = अपनी आत्मा के ज्ञान, ध्यान व अध्ययन रूप सुखामृत को छोड़कर इन्द्रियों के सुख को भोगता है, सो ही बहिरात्मा है ।135। देह, कलत्र, पुत्र व मित्रादिक जो चेतना के विभाविक रूप हैं, उनमें अपनापने की भावना करनेवाला बहिरात्मा होता है ।137।
यो.सा.यो./7 मिच्छा-दंसण-मोहियउ परु अप्पा ण मुणेइ । सो बहिरप्पा जिण भणिउ पुण संसार भमेइ ।7। = जो मिथ्यादर्शन से मोहित जीव परमात्मा को नहीं समझता, उसे जिन भगवान् ने बहिरात्मा कहा है, वह जीव पुनः पुनः संसार में परिभ्रमण करता है ।7।
ज्ञानसार/30 मदमोहमानसहितः रागद्वेषैर्नित्यसंतप्तः । विषयेषु, तथा शुद्धः बहिरात्मा भण्यते सैषः ।30। = जो मद, मोह व मान सहित है, राग-द्वेष से नित्य संतप्त रहता है, विषयों में अति आसक्त है, उसे बहिरात्मा कहते हैं ।30।
का./अ./मू./193 मिच्छत्त- परिणदप्पा तिव्व- कसाएण सुट्ठु आविट्ठो । जीवं देहं एक्कं मण्णं तो होदि बहिरप्पा ।193। = जो जीव मिथ्यात्व कर्म के उदय रूप परिणत हो, तीव्र कषाय से अच्छी तरह आविष्ट हो, और जीव तथा देह को एक मानता हो, वह बहिरात्मा है ।193।
प्र.सा./ता.वृ./238/329/12 मिथ्यात्वरागादिरूपा बहिरात्मावस्था । = मिथ्यात्व व राग-द्वेषादि कषायों से मलीन आत्मा की अवस्था को बहिरात्मा कहते हैं ।
द्र.सं./टी./14/46/8 स्वशुद्धात्मसंवित्तिसमुत्पन्नवास्तवसुखात्प्रतिपक्षभूतेनेन्द्रियसुखेनासक्तो बहिरात्मा, ... अथवा देहरहितनिजशुद्धात्मद्रव्यभावनालक्षणभेदज्ञानरहितत्वेन देहादिपरद्रव्येष्वेकत्वभावनापरिणतो बहिरात्मा, ... अथवा हेयोपादेयविचारकचित्तं निर्दोष परमात्मनो भिन्ना रागादयो दोषाः, शुद्धचैतन्यलक्षण आत्मा, इत्युक्तलक्षणेषु चित्तदोषात्मासु त्रिषु वीतरागसर्वज्ञप्रणीतेषु अन्येषु वा पदार्थेषु यस्य परस्परसापेक्षनयविभागेन श्रद्धानं ज्ञानं च नास्ति स बहिरात्मा । =- निज शुद्धात्मा के अनुभव से उत्पन्न यथार्थ सुख से विरुद्ध जो इन्द्रिय सुख उसमें आसक्त सो बहिरात्मा है ।
- अथवा देह रहित निज शुद्धात्म द्रव्य को भावना रूप भेदविज्ञान से रहित होने के कारण देहादि अन्य द्रव्यों में जो एकत्व भावना से परिणत है यानी - देह को ही आत्मा समझता है सो बहिरात्मा है ।
- अथवा हेयोपादेयका विचार करने वाला जो ‘चित्त’ तथा निर्दोष परमात्मा से भिन्न रागादि ‘दोष’ और शुद्ध चैतन्य लक्षण का धारक ‘आत्मा’ इन (चित्त, दोष व आत्मा) तीनों में अथवा सर्वज्ञ कथित अन्य पदार्थों में जिसके परस्पर सापेक्ष नयों द्वारा श्रद्धान और ज्ञान नहीं है वह बहिरात्मा है ।
- बहिरात्मा विशेष
का.अ./टी./193 उत्कृष्टा बहिरात्मा गुणस्थानादिमे स्थितः । द्वितीये मध्यमा, मिश्रे गुणस्थाने जघन्यका इति । = प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थान में जीव उत्कृष्ट बहिरात्मा है, दूसरे सासादन गुणस्थान में स्थित मध्यम बहिरात्मा है, और तीसरे गुणस्थान वाले जघन्य बहिरात्मा है ।
पुराणकोष से
देह और देही को एक मानने वाला व्यक्ति । यह तत्त्व-अतत्त्व में गुण-अवगुण में, सुगुरू-कुगुरू में, धर्म-धर्म में, शुभ-अशुभ मार्ग में, जिनसूत्र-कुशास्त्र में, देव-अदेव में और हेयोपादेय के विचार में विवेक नहीं करता । तप, श्रुत और व्रत से युक्त होकर भी यह स्व-पर विवेक से रहित होता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 16.67-72