भोक्ता
From जैनकोष
- सामान्य निर्देश
पं.का./त.प्र./२७ निश्चयेन शुभाशुभकर्मनिमित्तसुखदुःखपरिणामानां, व्यवहारेण शुभाशुभकर्मसंपादितेष्टानिष्टविषयाणां भोक्तृत्वाद्भोक्ता। = निश्चय से शुभाशुभकर्म जिनका निमित्त है ऐसे सुखदु:खपरिणामों का भोक्तृत्व होने से भोक्ता है। व्यवहार से (असद्भूत व्यवहारनय से) शुभाशुभ कर्मों से सम्पादित इष्टानिष्ट विषयों का भोक्तृत्व होने से भोक्ता है।
स.सा./आ./३२०/पं. जयचन्द–जो स्वतत्रपने करे–भोगे उसको परमार्थ में कर्ता भोक्ता कहते हैं। - भोक्तृत्व का लक्षण
रा./वा./२/७/१३/११२/१३ भोक्तृत्वमपि साधारणम्। कुत:। तल्लक्षणोपपत्तेः। वीर्यप्रकर्षात् परद्रव्यवीर्यादानसामर्थ्यभोक्तृत्वलक्षणम्। यथा आत्मा आहारादेः परद्रव्यस्यापि वीर्यात्मसात्करणाद्भोक्ता, .... कर्मोदयापेक्षाभावात्तदपि पारिणामिकम्। = भोक्तृत्व भी साधारण है क्योंकि उसके लक्षण से ज्ञात होता है । एक प्रकृष्ट शक्तिवाले द्रव्य के द्वारा दूसरे द्रव्य की सामर्थ्य को ग्रहण करना भोक्तृत्व कहलाता है। जैसे कि आत्मा आहारादि द्रव्य की शक्ति को खींचने के कारण भोक्ता कहा जाता है। ... कर्मों के उदय आदि की अपेक्षा नहीं होने के कारण यह भी पारिणामिक भाव है।
पं.का./त.प्र./२८ स्वरूपभूतस्वातन्त्र्यलक्षणसुखोपलक्षणसुखोपलम्भरूपंभोक्तृत्वं।=स्वरूपभूत स्वातत्र्य जिसका लक्षण है ऐसे सुख की उपलब्धिरूप ‘भोक्तृत्व’ होता है।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- सम्यग्दृष्टि भोगों का भोक्ता नहीं है।– देखें - राग / ६ / ६ ,७।
- षट्द्रव्यों में भोक्ता-अभोक्ता विभाग।– देखें - द्रव्य / ३ ।
- जीव को भोक्ता कहने की विवक्षा।– देखें - जीव / १ / ३ ।
- भोग सम्बन्धी विषय।–देखें - नीचे।