शब्द नय: Difference between revisions
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राजवार्तिक/4/42/17/261/16 <span class="SanskritText">शब्दे अनेकपर्यायशब्दवाच्य: एक:। </span>=<span class="HindiText">शब्दनय में अनेक पर्यायवाची शब्दों का वाच्य एक होता है।</span><br /> | |||
स्याद्वादमंजरी/28/313/2 <span class="SanskritText">शब्दस्तु रूढ़ितो यावंतो ध्वनय: कस्मिश्चिदर्थे प्रवर्तंते यथा इंद्रशक्रपुरंदरादय: सुरपतौ तेषां सर्वेषामप्येकमर्थमभिप्रैति किल प्रतीतिवशाद् ।</span>=<span class="HindiText">रूढि से संपूर्ण शब्दों के एक अर्थ में प्रयुक्त होने को शब्दनय कहते हैं। जैसे इंद्र शक्र पुरंदर आदि शब्द एक अर्थ के द्योतक हैं।<br /> | |||
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राजवार्तिक/4/42/17/261/11 <span class="SanskritText">शब्दे पर्यायशब्दांतरप्रयोगेऽपि तस्यैवार्थस्याभिधानादभेद:। </span>=<span class="HindiText">शब्दनय में पर्यायवाची विभिन्न शब्दों का प्रयोग होने पर भी, उसी अर्थ का कथन होता है, अत: अभेद है।</span><br /> | |||
स्याद्वादमंजरी/28/313/26 <span class="SanskritText"> न च इंद्रशक्रपुरंदरादय: पर्यायशब्दा विभिन्नार्थवाचितया कदाचन प्रतीतयंते। तेभ्य: सर्वदा एकाकारपरामर्शोत्पत्तेरस्खलितवृत्तितया तथैव व्यवहारदर्शनात् । तस्मादेक एव पर्यायशब्दानामर्थ इति। शब्द्यते आहूयतेऽनेनाभिप्रायेणार्थ: इति निरुक्तात् एकार्थप्रतिपादनाभिप्रायेणैव पर्यायध्वनीनां प्रयोगात् ।</span>=<span class="HindiText">इंद्र, शक्र और पुरंदर आदि पर्यायवाची शब्द कभी भिन्न अर्थ का प्रतिपादन नहीं करते; क्योंकि, उनसे सर्वदा अस्खलित वृत्ति से एक ही अर्थ के ज्ञान होने का व्यवहार देखा जाता है। अत: पर्यायवाची शब्दों का एक ही अर्थ है। ‘जिस अभिप्राय से शब्द कहा जाय या बुलाया जाय उसे शब्द कहते हैं’, इस निरुक्ति पर से भी उपरोक्त ही बात सिद्ध होती है, क्योंकि एकार्थ प्रतिपादन के अभिप्राय से ही पर्यायवाची शब्द कहे जाते हैं।<br /> | |||
देखें [[ नय#III.7.4 | नय - III.7.4 ]](परंतु यह एकार्थता समान काल व लिंग आदि वाले शब्दों में ही है, सब पर्यायवाचियों में नहीं)।<br /> | |||
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Revision as of 17:07, 30 November 2022
- शब्दनय का सामान्य लक्षण
आलापपद्धति/9 शब्दाद् व्याकरणात् प्रकृतिप्रत्ययद्वारेण सिद्ध: शब्द: शब्दनय:। =शब्द अर्थात् व्याकरण से प्रकृति व प्रत्यय आदि के द्वारा सिद्ध कर लिये गये शब्द का यथायोग्य प्रयोग करना शब्दनय है।
देखें नय - I.4.2 (शब्द पर से अर्थ का बोध कराने वाला शब्दनय है)।
- अनेक शब्दों का एक वाच्य मानता है।
राजवार्तिक/4/42/17/261/16 शब्दे अनेकपर्यायशब्दवाच्य: एक:। =शब्दनय में अनेक पर्यायवाची शब्दों का वाच्य एक होता है।
स्याद्वादमंजरी/28/313/2 शब्दस्तु रूढ़ितो यावंतो ध्वनय: कस्मिश्चिदर्थे प्रवर्तंते यथा इंद्रशक्रपुरंदरादय: सुरपतौ तेषां सर्वेषामप्येकमर्थमभिप्रैति किल प्रतीतिवशाद् ।=रूढि से संपूर्ण शब्दों के एक अर्थ में प्रयुक्त होने को शब्दनय कहते हैं। जैसे इंद्र शक्र पुरंदर आदि शब्द एक अर्थ के द्योतक हैं।
- पर्यायवाची शब्दों में अभेद मानता है
राजवार्तिक/4/42/17/261/11 शब्दे पर्यायशब्दांतरप्रयोगेऽपि तस्यैवार्थस्याभिधानादभेद:। =शब्दनय में पर्यायवाची विभिन्न शब्दों का प्रयोग होने पर भी, उसी अर्थ का कथन होता है, अत: अभेद है।
स्याद्वादमंजरी/28/313/26 न च इंद्रशक्रपुरंदरादय: पर्यायशब्दा विभिन्नार्थवाचितया कदाचन प्रतीतयंते। तेभ्य: सर्वदा एकाकारपरामर्शोत्पत्तेरस्खलितवृत्तितया तथैव व्यवहारदर्शनात् । तस्मादेक एव पर्यायशब्दानामर्थ इति। शब्द्यते आहूयतेऽनेनाभिप्रायेणार्थ: इति निरुक्तात् एकार्थप्रतिपादनाभिप्रायेणैव पर्यायध्वनीनां प्रयोगात् ।=इंद्र, शक्र और पुरंदर आदि पर्यायवाची शब्द कभी भिन्न अर्थ का प्रतिपादन नहीं करते; क्योंकि, उनसे सर्वदा अस्खलित वृत्ति से एक ही अर्थ के ज्ञान होने का व्यवहार देखा जाता है। अत: पर्यायवाची शब्दों का एक ही अर्थ है। ‘जिस अभिप्राय से शब्द कहा जाय या बुलाया जाय उसे शब्द कहते हैं’, इस निरुक्ति पर से भी उपरोक्त ही बात सिद्ध होती है, क्योंकि एकार्थ प्रतिपादन के अभिप्राय से ही पर्यायवाची शब्द कहे जाते हैं।
देखें नय - III.7.4 (परंतु यह एकार्थता समान काल व लिंग आदि वाले शब्दों में ही है, सब पर्यायवाचियों में नहीं)।
अधिक जानकारी के लिए देखें नय - III.6।