GP:प्रवचनसार - गाथा 84 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
इस प्रकार तत्त्व-अप्रतिपत्ति (वस्तु-स्वरूप के अज्ञान) से बंद हुए, मोह-रूप, राग-रूप या द्वेष-रूप परिणमित होते हुए इस जीव को-
- घास के ढेर से ढँके हुए खड्डे का संग करने वाले हाथी की भाँति,
- हथिनी-रूपी कुट्टनी के शरीर में आसक्त हाथी की भाँति और
- विरोधी हाथी को देखकर, उत्तेजित होकर (उसकी ओर) दौड़ते हुए हाथी की भाँति