पाहुड़
From जैनकोष
- यह प्राभृत शब्द का पर्यायवाची है। विशेष जानकारी हेतु देखें - प्राभृत ,
- आचार्य कुन्दकुन्द (ई.१२७-१७९) द्वारा ८५ पाहुड़ ग्रन्थों का रचा जाना प्रसिद्ध है, पर उनमें से निम्न १२ ही उपलब्ध हैं -
- समयसार,
- प्रवचनसार,
- नियमसार,
- पंचास्तिकाय,
- दर्शनपाहुड़,
- सूत्रपाहुड़,
- चारित्रपाहुड़,
- बोधपाहुड़,
- भावपाहुड़,
- मोक्षपाहुड़,
- लिंगपाहुड़,
- शील पाहुड़।
- दर्शन पाहुड़ से लेकर शील पाहुड़ पर्यन्त आठ ग्रन्थ अष्टपाहुड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमें से अन्तिम दो लिंग पाहुड़ व शील पाहुड़ को छोड़कर शेष छह षट्प्राभृत कहलाते हैं। षट्प्राभृत पर आ. श्रुतसागर (ई. १४७३-१५३३) कृत संस्कृत टीका उपलब्ध है। और आठों ही पाहुड़ पर पं. जयचन्द छाबड़ा ने ई. १८१० में देशभाषामय वचनिका लिखी है।