GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 130 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, पुण्य-पाप के स्वरूप का कथन है ।
- जीवरूप कर्ता के १निश्चय-कर्म-भूत शुभ-परिणाम द्रव्य-पुण्य को निमित्त-मात्र-रूप से कारण-भूत है इसलिये 'द्रव्य-पुण्यास्रव' के प्रसंग का अनुसरण करके (अनुलक्ष करके) वे शुभ-परिणाम 'भाव-पुण्य' हैं ।
- उसीप्रकार जीव-रूप कर्ता के निश्चय-कर्म-भूत अशुभ-परिणाम द्रव्य-पाप को निमित्त-मात्र-रूप से कारण-भूत हैं इसलिये 'द्रव्य-पापास्रव' के प्रसंग का अनुसरण करके (अनुलक्ष करके) वे अशुभ-परिणाम 'भाव-पाप' हैं ।
- पुद्गल-रूप कर्ता के २निश्चय-कर्म-भूत विशिष्ट-प्रकृति-रूप परिणाम (साता-वेदनीयादि खास प्रकृति-रूप परिणाम) -कि जिनमें जीव के शुभ-परिणाम निमित्त हैं, वे द्रव्य-पुण्य हैं; पुद्गल-रूप कर्ता के २निश्चय-कर्म-भूत विशिष्ट-प्रकृति-रूप परिणाम (असाता-वेदनीयादि खास प्रकृति-रूप परिणाम) -कि जिनमें जीव के अशुभ-परिणाम निमित्त हैं, वे द्रव्य-पाप हैं ।
इस प्रकार व्यवहार तथा निश्चय द्वारा आत्मा को मूर्त तथा अमूर्त कर्म दर्शाया गया ॥१३०॥
१जीव कर्ता है और शुभ परिणाम उसका (अशुद्ध-निश्चय-नय से) निश्चय कर्म है।
२पुद्गल कर्ता है और विशिष्ट-प्रकृति-रूप परिणाम उसका निश्चय-कर्म है (अर्थात निश्चय से पुद्गल-कर्ता है और साता-वेदनीयादि विशिष्ट प्रकृति-रूप परिणाम उसका कर्म है )।