GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 133 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, पुण्यास्रव के स्वरूप का कथन है ।
प्रशस्त राग, अनुकम्पा-परिणति और चित्त की अकलुषता - यह तीन शुभ भाव द्रव्य-पुण्यास्रव को निमित्त-मात्र-रूप से कारण-भूत हैं, इसलिये 'द्रव्य-पुण्यास्रव' के प्रसंग का १अनुसरण करके (अनुलक्ष करके) वे शुभ भाव भाव-पुण्यास्रव हैं और वे (शुभ भाव) जिसका निमित्त हैं ऐसे जो योग द्वारा प्रविष्ट होने वाले पुद्गलों के शुभ-कर्म-परिणाम (शुभ-कर्म-रूप परिणाम) वे द्रव्य-पुण्यास्रव हैं ॥१३३॥
१साता-वेदनीयादि पुद्गल-परिणाम-रूप द्रव्य-पुण्यास्रव का जो प्रसंग बनता है उसमें जीव के प्रशस्त रागादि शुभ-भाव निमित्त कारण हैं इसलिये 'द्रव्य-पुण्यास्रव' प्रसंग के पीछे-पीछे उसके निमित्त-भूत शुभ-भावों को भी 'भाव-पुण्यास्रव' ऐसा नाम है ।