GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 135 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, अनुकम्पा के स्वरूप का कथन है ।
किसी तृषादि दुःख से पीडित प्राणी को देखकर करुणा के कारण उसका प्रतिकार (उपाय) करने की इच्छा से चित्त में आकुलता होना वह अज्ञानी की अनुकम्पा है । ज्ञानी की अनुकम्पा तो, निचली भूमिका में विहरते हुए (स्वयं निचले गुणस्थानों में वर्तता हो तब), जन्मार्णव में निमग्न जगत के अवलोकन से (अर्थात् संसार-सागर में डूबे हुए जगत को देखने से) मन में किंचित खेद होना, वह है ॥१३५॥