GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 152 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, मोक्षमार्ग के स्वरूप का कथन है ।
जीव-स्वभाव में नियत चारित्र वह मोक्ष-मार्ग है । जीव-स्वभाव वास्तव में ज्ञान-दर्शन है क्योंकि वे (जीव से) अनन्य-मय हैं । ज्ञान-दर्शन का (जीव से) अनन्य-मय-पना होने का कारण यह है कि १विशेष-चैतन्य और सामान्य-चैतन्य जिसका स्वभाव है ऐसे जीव से वे निष्पन्न हैं (अर्थात् जीव द्वारा ज्ञानदर्शन रचे गये हैं) । अब जीव के स्वरूप-भूत ऐसे उन ज्ञान-दर्शनमें २नियत-अवस्थित ऐसा जो उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य-रूप ३वृत्ति-मय अस्तित्व, जो कि रागादि-परिणाम के अभाव के कारण अनिंदित है -- वह चारित्र है; वही मोक्षमार्ग है ।
संसारीयों में चारित्र वास्तव में दो प्रकार का है :- (१) स्वचारित्र और (२) परचारित्र; (१) स्वसमय और (२) परसमय ऐसा अर्थ है । वहाँ, स्वभाव में अवस्थित अस्तित्व-स्वरूप (चारित्र) वह स्व-चारित्र है और परभाव में अवस्थित अस्तित्त्व-स्वरूप (चारित्र) वह परचारित्र है । उसमें से (अर्थात् दो प्रकार के चारित्र में से), स्वभाव में अवस्थित अस्तित्व-रूप चारित्र, जो कि परभाव में अवस्थित अस्तित्व से भिन्न होने के कारण अत्यन्त अनिंदित है वह, यहाँ साक्षात् मोक्ष-मार्गरूप अवधारणा ।
यही चारित्र 'परमार्थ' शब्द से वाच्य ऐसे मोक्ष का कारण है, अन्य नहीं -- ऐसा न जानकर, मोक्ष से भिन्न ऐसे असार संसार के कारणभूत मिथ्यात्त्व-रागादि में लीन वर्तते हुए अपना अनन्त काल गया; ऐसा जानकर उसी जीव-स्वभाव-नियत चारित्र की, जो कि मोक्ष के कारण-भूत है उसकी -- निरन्तर भावना करना योग्य है । इस प्रकार सूत्रतात्पर्य है ॥१५२॥
१विशेष-चैतन्य वह ज्ञान है और सामान्य-चैतन्य वह दर्शन है ।
२नियत = अवस्थित; स्थित; स्थिर; दृढरूप स्थित ।
३वृत्ति = वर्तना; होना । (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप वृत्ति वह अस्तित्व है ।)