GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 157 - अर्थ
From जैनकोष
परद्रव्यात्मक भावों से रहित स्वरूप वाला जो दर्शन-ज्ञान के विकल्प को आत्मा से अविकल्प / अभिन्न रूप आचरण करता है, वह स्वचारित्र का आचरण करता है ।
परद्रव्यात्मक भावों से रहित स्वरूप वाला जो दर्शन-ज्ञान के विकल्प को आत्मा से अविकल्प / अभिन्न रूप आचरण करता है, वह स्वचारित्र का आचरण करता है ।