GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 65 - अर्थ
From जैनकोष
जैसे पुद्गल-द्रव्यों सम्बन्धी अनेक प्रकार की स्कन्ध-रचना पर से अकृत (दूसरे से किए बिना / स्वत:) दिखाई देती है; उसी प्रकार कर्मों का जानना चाहिए।
जैसे पुद्गल-द्रव्यों सम्बन्धी अनेक प्रकार की स्कन्ध-रचना पर से अकृत (दूसरे से किए बिना / स्वत:) दिखाई देती है; उसी प्रकार कर्मों का जानना चाहिए।