GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 65 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
कर्मों की विचित्रता (बहु-प्रकारता) अन्य द्वारा नहीं की जाती ऐसा यहाँ कहा है ।
जिस प्रकार अपने को योग्य चन्द्र-सूर्य के प्रकाश की उपलब्धि होने पर, संध्या, बादल, इन्द्र-धनुष, प्रभा-मण्डल इत्यादि अनेक प्रकार से पुद्गल-स्कन्ध-भेद अन्य करता की अपेक्षा बिना ही होते हैं, उसी प्रकार अपने को योग्य जीव-परिणाम की उपलब्धि होने पर, ज्ञानावरणादि अनेक प्रकार के कर्म भी अन्य करता की अपेक्षा के बिना ही उत्पन्न होते हैं ॥६५॥