GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 95 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यहाँ, धर्म, अधर्म और लोकाकाश का अवगाह की अपेक्षा से एकत्व होने पर भी वस्तु-रूप से अन्यत्व कहा गया है ।
धर्म, अधर्म और लोकाकाश समान परिमाण-वाले होने के कारण साथ रहने मात्र से ही (मात्र एक-क्षेत्रावगाह की अपेक्षा से ही) एकत्व-वाले हैं, वस्तुतः तो (१) व्यवहार से गति-हेतुत्व, स्थिति-हेतुत्व और अवगाह-हेतुत्व-रूप (पृथक-उपलब्ध विशेष द्वारा) तथा (२) निश्चय से १विभक्त-प्रदेशत्वरूप पृथक-उपलब्ध २विशेष द्वारा, वे अन्यत्व-वाले ही हैं ॥९५॥
१विभक्त = भिन्न (धर्म, अधर्म और आकाश को भिन्न-प्रदेश-पना है।)
२विशेष = खासियत, विशिष्टता, विशेषता। (व्यवहार से तथा निश्चय से धर्म, अधर्म और आकाश के विशेष पृथक उपलब्ध हैं अर्थात भिन्न भिन्न दिखाई देते हैं।)