GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 96 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
अब, १चूलिका है --
यहाँ द्रव्यों का मूर्तामूर्तपना (-मूर्तपना अथवा अमूर्तपना) और चेतनाचेतनपना (-चेतनपना अथवा अचेतनपना) कहा गया है ।
स्पर्श-रस-गंध-वर्ण का सद्भाव जिसका स्वभाव है वह मूर्त है, स्पर्श-रस-गंध-वर्ण का अभाव जिसका स्वभाव है वह अमूर्त है । चैतन्य का सद्भाव जिसका स्वभाव है वह चेतन है, चैतन्य का अभाव जिसका स्वभाव है वह अचेतन है । वहाँ आकाश अमूर्त है, काल अमूर्त है, जीव स्वरूप से अमूर्त है, पररूप में २प्रवेश द्वारा (-मूर्तद्रव्य के संयोग की अपेक्षा से) मूर्त भी है, धर्म अमूर्त है, अधर्म अमूर्त है, पुद्गल ही एक मूर्त है। आकाश अचेतन है, काल अचेतन है, धर्म अचेतन है, अधर्म अचेतन है, पुद्गल अचेतन है, जीव ही एक चेतन है ॥९६॥
१चूलिका = शास्त्र में जिसका कथन न हुआ हो उसका व्याख्यान करना अथवा जिसका कथन हो चुका हो उसका विशेष व्याख्यान करना अथवा दोनों का यथा-योग्य व्याख्यान करना ।
२प्रवेश = जीव निश्चय से अमूर्त, अखंड, एक-प्रतिभास-मय होने से अमूर्त है, रागादि-रहित सहजानन्द जिसका एक स्वभाव है ऐसे आत्म-तत्त्व की भावना रहित जीव द्वारा उपार्जित जो मूर्त कर्म उसके संसर्ग द्वारा व्यवहार से मूर्त भी है ।