GP:प्रवचनसार - गाथा 120 - अर्थ
From जैनकोष
इसलिये संसार में 'स्वभाव में अवस्थित' ऐसा कोई भी नहीं है और संसार तो संसरण करते हुये (घूमते हुये) द्रव्य की क्रिया है ।
इसलिये संसार में 'स्वभाव में अवस्थित' ऐसा कोई भी नहीं है और संसार तो संसरण करते हुये (घूमते हुये) द्रव्य की क्रिया है ।