GP:प्रवचनसार - गाथा 140 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
आकाश का एक परमाणु से व्याप्य अंश वह आकाश-प्रदेश है; और वह एक (आकाश-प्रदेश) भी शेष पाँच द्रव्यों के प्रदेशों को तथा परम सूक्ष्मता-रूप से परिणमित अनन्त परमाणुओं के स्कंधों को अवकाश देने में समर्थ है । आकाश अविभाग (अखंड) एक द्रव्य है, फिर भी उसमें (प्रदेशरूप) अंशकल्पना हो सकती है, क्योंकि यदि ऐसा न हो तो सर्व परमाणुओं को अवकाश देना नहीं बन सकेगा । ऐसा होने पर भी यदि 'आकाश के अंश नहीं होते' (अर्थात् अंशकल्पना नहीं की जाती), ऐसी (किसी की) मान्यता हो, तो आकाश में दो अंगुलियाँ फैलाकर बताइये कि 'दो अंगुलियों का एक क्षेत्र है या अनेक ?' यदि एक है तो (प्रश्न होता है कि :-),
- आकाश अभिन्न अंशोंवाला अविभाग एक द्रव्य है, इसलिये दो अंगुलियों का एक क्षेत्र है या
- भिन्न अंशोंवाला अविभाग एक द्रव्य है,
- यदि 'आकाश अभिन्न अंशवाला अविभाग एक द्रव्य है इसलिये दो अंगुलियों का एक क्षेत्र है' ऐसा कहा जाय तो, जो अंश एक अंगुलिका क्षेत्र है वही अंश दूसरी अंगुलिका भी क्षेत्र है, इसलिये दो में से एक अंश का अभाव हो गया । इस प्रकार दो इत्यादि (एक से अधिक) अंशों का अभाव होने से आकाश परमाणु की भाँति प्रदेश-मात्र सिद्ध हुआ! (इसलिये यह तो घटित नहीं होता);
- यदि यह कहा जाय कि 'आकाश भिन्न अंशोंवाला अविभाग एक द्रव्य है' (इसलिये दो अंगुलियों का एक क्षेत्र है) तो (यह योग्य ही है, क्योंकि) अविभाग एक द्रव्य में अंश-कल्पना फलित हुई ।
यदि ऐसा कहा जाय कि (दो अंगुलियों के) 'अनेक क्षेत्र हैं' (अर्थात् एक से अधिक क्षेत्र हैं, एक नहीं) तो (प्रश्न होता है कि-),
- 'आकाश सविभाग (खंड-खंडरूप) अनेक द्रव्य है इसलिये दो अंगुलियों के अनेक क्षेत्र हैं या
- 'आकाश अविभाग एक द्रव्य' होने पर भी दो अंगुलियों के अनेक (एक से अधिक) क्षेत्र हैं?
- 'आकाश सविभाग अनेक द्रव्य होने से दो अंगुलियों के अनेक क्षेत्र हैं' ऐसा माना जाय तो, आकाश जो कि एक द्रव्य है उसे अनन्त-द्रव्यत्व आ जायगा'; (इसलिये यह तो घटित नहीं होता)
- 'आकाश अविभाग एक द्रव्य होने से दो अंगुलियों का अनेक क्षेत्र है' ऐसा माना जाय तो (यह योग्य ही है क्योंकि) अविभाग एक द्रव्य में अंश-कल्पना फलित हुई ॥१४०॥