GP:प्रवचनसार - गाथा 15 - अर्थ
From जैनकोष
[यः] जो [उपयोगविशुद्ध:] उपयोग विशुद्ध (शुद्धोपयोगी) है [आत्मा] वह आत्मा [विगतावरणान्तरायमोहरजा:] ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और मोहरूप रज से रहित [स्वयमेव भूत:] स्वयमेव होता हुआ [ज्ञेयभूतानां] ज्ञेयभूत पदार्थों के [पारं याति] पार को प्राप्त होता है ॥१५॥