GP:प्रवचनसार - गाथा 161 - अर्थ
From जैनकोष
[देह: च मन: वाणी] देह, मन और वाणी [पुद्गलद्रव्यात्मका:] पुद्गलद्रव्यात्मक [इति निर्दिष्टा:] हैं, ऐसा (वीतरागदेव ने) कहा है [अपि पुन:] और [पुद्गल द्रव्य] वे पुद्गलद्रव्य [परमाणुद्रव्याणां पिण्ड:] परमाणुद्रव्यों का पिण्ड है ।